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श
जैनकया रत्नकोष नाग आाठमो.
पटुकाय जणी प्रतिपाले जी ॥ वा० ॥ ८ ॥ दोष रहित लीये खाहार जी ॥ प्र० ॥ मुनि पाले पंचाचार जी ॥ वा० ॥ ए ॥ कहुं मुनिनी किर्त्तिकेती जी ॥ प्र० ॥ व्रत पाले जावनसेंती जी ॥ वा० ॥ १० ॥ श्री घनरथ जिन उपकारी जी ॥ प्र० ॥ प्रतिवोध्यां वहु नर नारी जी ॥ वा० ॥ ११ ॥ नव क मल वे प्रभु पाया जी ॥ प्र० ॥ सुर असुर मली गुण गाया जी ॥ वा० ॥ १२ ॥ मल धोई घाती केरो जी ॥ प्र० ॥ जिन लह्यो शिव वाम नलेरो जी ॥ वा० ॥ १३ ॥ हवे मेघरथ मुनि निर्मायी जी ॥ प्र० ॥ करे सुधी साधुकमाई जी ॥ वा ॥ १ || राधे स्थानक वीश जी ॥ प्र० ॥ बांधे जिननाम जगीश जी ॥ वा० ॥ १५ ॥ अरिहंत सिद्ध प्रवचन नाम जी ॥ प्र० ॥ गुरु शिविर साधु गुणग्राम जी ॥ वा० ॥ १६ ॥ वा त्सव्य एहोनां करवां जी ॥ प्र० ॥ बहुश्रुत तपस्वी चित्त धरवा जी ॥वा० ॥ १७ ॥ शुद्ध ज्ञानतणो उपयोग जी ॥ प्र० ॥ दर्शन गुण विनयनो योग जी ॥ वा० ॥ १८ ॥ आवश्यक शीलव्रत लेखे जी ॥ प्र० ॥ रहे निरति चार विशेपें जी ॥ वा० ॥ १९ ॥ दल जव तप त्याग विचारो जी ॥ ॥ प्र० ॥ वैयावच्चें समाधि गुण धारो जी ॥ वा० ॥ २० ॥ ग्रहे ज्ञान अपूरव होंगें जी ॥ प्र० ॥ श्रुतनक्ति करे सुविशेपें जी ॥ वा० ॥ २१ ॥ प्रवचन प्रभावना सारी जी ॥ प्र०॥ विशमे वोले निर्धारी जी ॥वा ॥२२॥ करे सिंहनिकीडित साधुं जी ॥ प्र० ॥ तप जेवुं कंचन जाचुं जी ॥ वा० ॥ २३ ॥ करे किरिया मुनिवर साची जी ॥ प्र० ॥ जिनपद बांधयुं नि काची जी ॥ वा० ॥ २४ ॥ लाख वरस चरण प्राराधी जी ॥ प्र० ॥ चढती गुणश्रेणी वाधी जी ॥ वा ॥ २५ ॥ निजकाय प्रथाम ए जाली जी ॥ प्र० ॥ दृढरथ मुनि सुगुण खाणी जी ॥ वा० ॥ २६ ॥ तिलका चल उपरें वेही जी ॥ प्र० ॥ गुद्ध भूमितल पडिलेही जी ॥ वा० ॥ २७ ॥ लख चोराशीने खमावी जी ॥ प्र० ॥ मन वैराग्य जावना नावी जी ॥ वा० ॥ २८ ॥ शरणां चार उदार जी ॥ प्र० ॥ करे असल गुणनं मार जी ॥ वा ॥ २७ ॥ वोसिरावी तेणें निज काया जी || || नहिं मन ममता ने माया जी ॥ वा० ॥ ३० ॥ मनमांहे समाधिने साथी जी ॥ प्र० ॥ सर्वारिय सिद्धि ऋद्धि लाधी जी ॥ वा० ॥ ३१ ॥ तेत्री सहस व र्ष जाय जी ॥ प्र० ॥ तव नूखनी इहा याय जी ॥ वा० ॥ ३२ ॥ ते