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शएन जैनकथा रत्नकोष नाग आरमो.
॥दोहा॥ ॥ण अवसर सौधर्मपति, निज आसन चल जाणि ॥ ज्ञान अवधि उपयोगथी, लघु जन्म कल्याण ॥ १ ॥ मन विकस्युं तन उन्नस्यु, पायो प रम करार ॥ तेडी हरिणगमेपीने, दुकम करे तेणि वार ॥ ५ ॥
॥ ढाल त्रीजी॥ ॥ गुन नव अमृतवेलीकंदो ॥ ए देशी ॥ इंश कहे हरिणगमेपीने, सुख लहियें प्रनु देखीने रे॥ जिन जायो नगीनो ॥ जगको सुःख दूरें कीनो रे ॥ प्रनु जायो नगीनो ॥ ए आंकणी ॥ १ ॥ वा सुघोपा घंट ए ताजी, रहे सोहम सुरलोक गाजी रे ॥ जिन ॥ ३ ॥ पांचशे सुर मली घंटा वाइ, सघली घंटा रणजण थाई रे ॥ जि ॥ ३ ॥ खवर दुई सौध, मके वासी, मलिया ए तुरत उनासी रे ॥ जि० ॥ ४ ॥ कहे हरि जि॥ जन्मोत्सव काजें, जामु क्षेत्र जरतें शुजसाजें रे ॥ जि० ॥ ५ ॥ अचिरंप राणीको नंदन नीको, जिन शोलम त्रिभुवनटीको रे ॥ जि ॥६॥ करि जन्मोत्सव व सुख पागुं, अमो लान अनंत उपायुं रे ॥ जि ॥ ७ ॥ पालक योजन लाख विमान, तेणें वेसे इंश सुझान रे ॥ जि ॥ ॥ साथै सहस चोराशी सामान्य, अंगरक्षक चढ गुण मान रे ॥ जि० ॥ ॥ अयमहिषी आते गुणवंती, पियु साथें चली पुण्यवंती रे ॥ जि० ॥ १० ॥ वत्रीश लाख विमानके स्वामी, सदु आइ मिले शिर नामी रे ॥ जि० ॥ ११ ॥ को यारों को पूर्वसें थावे, मारग विच जिन गुण गावे रे ॥ जि ॥ १२ ॥ पडखे नहिं को सेवक स्वामी, जिननक्ति मांहे नहिं खामी रे ॥ जि० ॥ १३ ॥ हर्प जयो प्रनुको मुख जोवा, निज पातक मेलने धोवा रे ॥ जि० ॥ १४ ॥ आइ उजाय नंदीश्वरही, उहां आवि विमान संपें रे ॥ जि ॥ १५ ॥ आवे जरत गजपुर जाणा, प्रनु देखण दर्प नराणा रे ॥ जि० ॥ १६ ॥ आवी नमे जिन जिनजननीकों, कहे तें सुत जायो नीको रे ॥ जि० ॥ १७ ॥ हर्प कियो त्रिदु लोकके मांई, हम वांटी स्वर्ग वधाई रे ॥ जि ॥ १७ ॥ माई तेरे सुतकुं ले जाणू, सुरगिरि शिखरें नवरायु रे ॥ जि० ॥ र ए ॥ करा समकित निर्मल साचु, प्रनु देखि देखि अमें राचुं रे ॥ जि॥ ५० ॥ जिन प्रतिरूप मेहले मायपासें, अवस्वापिनी दे उन्नासें रे ॥ जि० ॥ २१ ॥