________________
श्री शांतिनायनो रास खंभ हो. एए करि पंच रुप मुरेश्वर चाले, प्रनुकुं एकरूपें काले रे ॥ जि० ॥ २२ ॥ दोय रूपं हरि चामर ढाले, एक उत्र धरे नजमाले रे ॥ जि० ॥ २३ ॥ बज जेई प्रजु यागल दोडे, एक रूप हरि मन कोडें रे ॥ जि० ॥ २४ ॥ मेरुशिखर ले आव्या रंगें, मलिया चोसत मन रंगे रे ॥ जि॥ २५॥ वीश नुवनपति स्वामी कहीजें, वत्रीश व्यंतर विनु लीजें रे ॥ जिजाश६॥ दोय रवि शशी ज्योतिपके इंदा,दश वैमानिक प्रानंदा रे ॥ जि०॥ २७॥ सांधर्म लिये नत्संगें, प्रजु स्नात्र करणकं उमंगें रे ॥जि० ॥ २० ॥ सोवनरुप मणि माटीना, कलशा वलि कीधा नवीना रे ॥ जि० ॥ २॥ एक सहस ऊपर तेम थात, एक जातिना अड जाति ठाउ रे ॥ जि ॥ ३० ॥ होय एक कोडी थने सात लाख, कलशा ए शास्वनी सारख रे ॥ प्राजि० ॥३१॥ पणवीश योजन कलशा उंचा, वार योजन पहोला ठिया रे ॥ जि० ॥ ३२ ॥ नाखूवां एक योजननां रे जाव्यां, कलशानीरें नरीसाव्या रे ॥ जि० ॥३३॥ अञ्युत यादि नवे सुरस्वामी, प्रनु न्हवा करे शिर नामी रे ॥ जि ॥ ३४ ॥ स्थापी ईशान इंनी गोदें, करे शक नमाण मन मोर्दै रे ॥ जि० ॥ ३५ ॥ वस्त्रे हो लूंची प्रमुढें धंग, गुचि चंदने नेपे सुचंग रे ॥ जि० ॥ ३६ ॥ नव नव नक्ति करे तिहां देवा, प्रनु गुण गाइ करे सेवा रे ॥ जि० ॥ ३७ ॥ धारति मंगल दीप उतारे, प्रनु तो विण कुण हम तारे रे ॥ जि ॥३॥ तहे हो त्रीजी ढाल ए बोली, कहे ने राम दिल खोली रे ॥जि॥३॥ जिनगुण जगतां पावन जीहा, . सफला दोय रात ने दीहा रे ॥ जि० ॥ ४० ॥सर्वगाया ॥७॥ श्लोक ॥
॥दोहा॥ ॥ ३ करे जिनवर तणी, स्तुति जोडी दोई हाथ ॥ नवसमुश्मा वडतां. मल्यो जहाज तुं नाथ ॥१॥ जय अचिरा राणी कयरें, सरोवर हंस समान ॥ नव्यकुमुदवनचंमा, अतुलीवल नगवान ॥ २ ॥ जय श्र नादि ग्रंजन रहित, निराकार निरुपाधि ॥ ज्योतिरुप जगदीश तुं, प्रगटी सहज समाधि ॥ ३ ॥ करवा पावन पतितने, तंलीधो अवतार 15 स्तर जगलायन्यका तार तार प्रनु तार ॥४॥ धन्य दुरुतपुण्य एं, दी दरिमा श्राज ॥ एमरुस्यन नंसारमां, तुं सुरतर जिनगन ॥ ५॥ इत्यादिक वचन करी, नमी स्ती नुरराय ॥ मेरुशिखरची श्रा
h
.... - I amsinaarTermgar