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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
॥ ढाल वीजी ॥
॥ चूडले जोवन ऊल रह्यो । ए देशी ॥ हो राजन ॥ गणिका एक यावी तिहां, कुर्कुट लेई एक ॥ राजन ॥ हारे न महारो कूकडो, कोइ खागल सुवि वेक || राजन ॥ १ ॥ वात सुणो वारू परें, न करो कोइ गुमान ॥ रा० ॥ जो कोइ गर्व करे मनें, तो त्राणो कूकड इस गए || रा० ॥ वा० ॥ २ ॥ हो राजन ॥ जो हारे मुऊ कूकडो, तो या धन लक्ष ॥ रा०॥ जो कोइ हारे अवरनो, तो लह लहुं प्रत्यक्ष ॥ रा० ॥ वा० ॥ ३ ॥ हो० ॥ गर्व घणो करती तदा, निसुली मनोरमा नारी ॥ रा० ॥ नृप दुकमथी मोक ब्यो, निज कुर्कुट तेलि वार ॥ रा० ॥ वा० ॥ ४ ॥ हो० ॥ जूऊल ला ग्या कूकडा, नृपागल दरवार ॥रा०॥ उलट पालट याये बने, चंचू चरण प्रहार ॥ रा० ॥वा॥५॥होणा अरुण नयण ततक्षण थयां, प्राथडिया जेम योध || रा० ॥ वाखा पण न रहे केसें, वैरथकी दुर्बोध ॥ रा० ॥ वा० ॥६॥ हो० ॥ त्रिदु ज्ञाने शोजित प्रभु, श्रीधनरथ राजान ॥ रा० ॥ कहे मेघर कुंवर जणी, सुण वत्स सुगुण निधान ॥ रा० ॥ वा० ॥ ७ ॥ हो० ॥ ए वे पंखीमांहिलो, नहिं हारे कोइ एक ॥ रा० ॥ कहे मेघरथ कारण किस्युं, कहे नृप वैर ए बेक ॥ रा० ॥ वा० ॥ ८ ॥ हो० ॥ ऐ रक्तानि देत्रमा, रत्नपुरें दोय सार ॥ रा० ॥ धनद सुदत्त नामें वसे, वणिक करे व्यापार ॥ रा० ॥ वा० ॥ ए ॥ हो० ॥ मित्राई वेदुने बनी, पण घरनामसकीन ॥ रा० ॥ मंत्रीयें जोडी बलदने, जाय पर गायें दीन ॥ ० ॥ वा० ॥ १० ॥ हो० ॥ चार नरे प्रतिही घणो, नूख तृपा वली तेम ॥ रा० ॥ बलद विचारा गुं करे, सहे निज कृतने एम ॥ रा० ॥ वा० ॥ ११॥ हो० ॥ मिथ्यात्वें मोह्या घणुं, कूड तोलां ने मान ॥ रा० ॥ करे अन्याय नपा, धन मेल्युं ए निदान || रा० ॥ वा ॥ १२ ॥ हो० ॥ एक दिवस धन कारणें, वढीया ते वेदु जोर || रा० ॥ अन्योन्ये एकेकने, दीघ प्रहार कठोर ॥ रा० ॥ चा० ॥ १३ ॥ हो० ॥ यास्तव्याने ते मुत्र्या, धन धनरथ करनार ॥ रा० ॥ नेह तोडावे पलक में, दुवे प्रत्यक्ष संहार || रा० ॥ वा० ॥ १४ ॥ हो० ॥ नरनव हारी ते दुवा, स्वर्णकुलाने कूल ॥ रा० ॥ दोय हस्ती सोहामणा, लोन वडो प्रतिकूल ॥ रा० ॥ वा० ॥ १५ ॥ हो० ॥ कंचनकलश पहेलो थयो,