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श्री शांतिनाथनो रास खंम पहेलो. . १५ श्राव्या नृपति गृहनें यांगणे जी॥ हर्ष धरी मनमांहे, सासूयें पोंख्या घरने वारणे जी ॥ ६ ॥ वेता मायरामांहे, त्रैलोक्यसुंदरी मन हरखी घणुं जी ॥ वरियो कुमर सुरंग, रायें आप्युं धन धन नूपणुं जी ॥ ७ ॥ कर नवि मूके कुमार, रायें पूब्युं शी मन कामना जी ॥ आपे पंच तुरंग, चपलगति पाणी पंथना जी ॥ ॥ माग्युं आप्युं राय, हर्प दु विवाह सोहामणो जी ॥ देखी कन्यारूप, कुमर थयो मनमांहे दया मणो जी ॥॥ कीg सवल अकाज, कुमरी अमरी सरखी पनिणी जी। केम कोढीने हाथ, देतां निर्गमशे दिन जामिनी जी ॥ १० ॥ श्म चिंत वतो तेह, मंदिर आव्यो बहु आमंबरें जी ॥ देखी पियु चलचित्त, कुमरी चमकी हियडा नीतरें जी ॥ ११॥ इंगित जागी जाव, केड न मूके कुमरी तेहनी जी॥ मनमाहे दिलगीर, रागें रंगाणी मीजी जेहनी जी ॥ १२ ॥ मंत्री राय दिये मान, देहचिंताने मिष करी नीसखो जी॥ जल कारी लेइ नारि, चाली लावे. चूंघट वीसयो जी ॥ १३ ॥ जेह कयुं पण तेह, दीगो शून्यमनें उन्नो रह्यो जी ॥ सोपीयो तमने देह, नूख तृपा के ने मुझने कहो जी ॥ १४ ॥ हा ना न कहे रे कां, मन जागी मोदक मगाविया जी॥ कुंवर चारखी रे ले, अवसर वचन कहे रस नावियां जी ॥ १५ ॥ दोहो ॥ मीठा ए मोदक जला, खातां जांगे नूख ॥ पण नीर उजेणीनुं मले, तो सवि थाये सुख ॥ १ ॥ पूर्वढाल ॥ चिंते राज कुमार, गुंए जाणे उजेपी नीरने जी ॥ अथवा तिहां कोई दीस, गयो होशे घर मात त्यां वीरने जी॥ १६ ॥ जलें कीचूं मुख शुरु, वीर्यु आप्यु हाथे कंथने जी ॥ श्राव्यो मंदिर सोय, विनता वोले लही चल चित्तनें जी॥ १७ ॥ केम पियु थें दिलगीर, वात कहो मनमां होवे जिसी जी ॥ उखे उदर मुज जोर, एम कही देहचिंता उठ्यो घसी जी ॥ १७ ॥ विनता रही विश्वास, जल लेइ के.थी जायें वही जी ॥ ते पहों च्यो ततकाल. वस्तु उजेणीपंथें जिहां रही जी ॥ १ए ॥ रथ आरोपी वस्तु, चार तुरंगम जोडें जोतस्या जी॥ बांध्यो पूत्रे रे एक, चाल्या तुरत तिहाथी पाधरा जी ॥ २०॥ पूर्व पंथीने पंय, कुमर वेठो रय निर्नयपणे जी ॥ घोडा दिवस मजार, कुमर पहोतो नगर यापणे जी॥ १ ॥ ,