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श्री शांतिनाथनो रास खंम बीजो. खास रे ॥ ५० ॥ ख ॥ १७ ॥ यकृतं ॥ क्षणेन सन्यते यामो, यामेन लन्यते दिनम् ॥ दिनेन सन्यते कालः, कालः कालोनविष्यति ॥ १ ॥ पूर्व दास ॥ मुज पियु मरवानो नहिं रे लो, रवणतणे प्रसाद रे ॥ १० ॥ तो उत्तर कहि कारिमो रे लो, करुं एहने थाहाद रे ॥ च ॥ खण् ॥ १७ ॥ तट जइ पुरना स्वामिनी रे लो, लहि अनुमति सदु साखरे ॥ च ॥ वयण तुमार माना रे लो, हरख्यो एम सुपी जाप रे ।। च ॥ ख० ॥ १ए ॥ निसुणो धनद तणी कथा रे लो, श्रोता बीजे खंग रे ॥ च ॥ ढाल कही उंगणीशमी रे लो, लेहो सुरक श्रखंम रे ॥ च०॥ खः ॥२०॥
॥दोहा ॥ ॥ पुर जइ नृपनें संतोका, धन देई थसमान ॥ चिंतित करा श्रा पा, चिंते ते यज्ञान ॥ १ ॥ पण जाणे नहिं बापडो, परशेहें केम काज । सिह थाये संसारमा, जेहयी प्रनु इतराज ॥ २ ॥ हवे धनद जलनिधि पख्यो, पूर्वजन कोई चान ॥ फलक वही श्राव्युं करें, अहो नदी पुण्यनिदान ॥ ३ ॥ ते अवलंबी चालियो, कबोलें लोलंत ॥ पंचम दिवस ते धनद, निजपुर निकट पहुंत ॥ ४ ॥ तट देखी दरख्यो दिये, जोये नयणंजाम ॥ मत्स्य महोटे फलके सहित, गत्यो प्रचिंतित ताम ॥ ५ ॥ थहो विषमी गति कर्मनी, कोण काली नवि जाय ॥ जे जे मनमा वितीये, ते ते निष्फल चाय ॥ ८ ॥ नरकोपम पडियो तदा, मत्स्य उदर मां तत् ।। चिंते ए शुंनीपन्यु. कर्मवों मुझ पह ॥ ॥ कष्ट हरण माणित मरणे, ते मत्स्य पीयरें यह ॥ उपकंवें श्राण्या तुरत, हिचा विदारण कीय ॥ ॥ उदरमध्ययी नीलग्यो. देखी दिच्य कुमार ॥ जलें नवरावी नेने, मुक्यो राजवार ॥ ९ ॥
॥ दाल चीशमी ' ॥ हारे नावा रे गती नदी यमुनानां नीर जो॥ ए देवी । हारे तय प्रने राजायचारिज वाली बात जा, नाइ मुल नांगोने । नुमची कथा रे लो। हारे रहियों ममय बदरमा लु नुस्मार जो, म सदेवाणी सय जीतं यया रेलो॥ ॥ तव गुमर रहे. राजन जन जोर जो, यांच्या गाडीने कमें जीपदी जो ॥ हार एकर प्रदेश कम अनंती यात जो, पापीनीzmi नयां अनुदिन जीजा सालार में