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रए जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. कहिने गुज चीर, वसनयुगल तेहने पहेरावियां जी॥ लखमूल्यने दो जीलखमूल्यने अलंकार, सोहे कुंवर सदुने मन नाविया जी ॥ १५ ॥ गुन- . वेला जी हो शुज वेला रे मंमाण, धवल मंगल गाये सुंदर गोरडी जी॥ करमेलो हो जी करमेलो तिहां कीध, परण्यो कन्या साते गुण उरडी जी ॥ १३ ॥ मुज तातें जी हो मुज तातें नटुं कीध, रीप करी जे । मुफ उपर अति घणी जी ॥ नहिंतर मुज जी हो नहिंतर मुफ एह लान, होत किहांथी अचिंत्यो सुखणी जी ॥ १४ ॥ करि विवाहजी हो करि । विवाह मनरंग, वधूसहित ते शेठने मंदिरें जी॥ बहु उत्सव हो जी वदु उत्सव करे इन्य, प्रेमशुं पधराव्या सौध ऊपरें जी ॥ १५ ॥ सिंहास । न हो जी सिंहासन निज कंथ, रहि मुख आगल मनी कामिनी जी॥ कहो वालम हो जी कहो वालम अम अाज, सकल कला शीखी जेह । स्वामिनी जी ॥ १६ ॥ सुपो गोली हो जी जोली सुणो मोरी वात, एह कला मुज मनडे नवि गमे जी ॥ यमुक्तं ॥ अत्यंत विषां नैव, सुखं मूर्ख नृणां न हि ॥ अर्जनीया कलावनिः,सर्वथा मध्यमाः कलाः॥१॥पूर्वढाल ॥ एद पद्यनो हो जी पद्यनो अरथ विचार, करवा दो लागी कामिनी तिण समे जी ॥ १७ ॥ मन चिंते हो जी मन चिंते पुण्यसार, पद रखे जाये गगनें वही जी ॥ जो थाशे हो जी थाशे जी कालविलंब, तो ते देवी उमी जाशे सही जी ॥ १७ ॥ करे कुंवर हो जी कुंवर दिशि अवलोक, तव गुणवंती वोली गुणसुंदरी जी ॥ { स्वामी हो जी देहचिंता उत्पन्न, जे एम जूवो बो चिहुं दिशि फरी फरी जी ॥१॥ कहे एमहीज हो जी एम हीज मुझ मनमांहि, वात सुपी कहे ते निजस्वामीने जी॥ढुंआ, होजी प्रीतमजी तुम्ह साय,प्रेमगुं पाउधारीजें हो कामने जी ॥२॥ अघनमियें होजी रहि अवला एक पास, मनमां करे पुण्यसार विचारणा जी॥ खटिका हो जी एक लखीयो तिहां श्लोक, जारवटें करी सुधी धारणा जी ॥२१॥ यतः ॥ दोहो ॥ किहां गोवालो किहां वनही, किहां लंबोदर देव ॥ श्राव्यो वेटो विहिवसीण, गयो सत्त य परणेवि ॥१॥ पूर्वढाल ॥नामि नीने होजी कुमर कहे रहो दूर,देहचिंता जिम मुक सुखयी दुवे जी ।। गुण सुंदरी हो जी उनी रही तिण वाय, वाट तिहां वालमनी घणी जोवे जी॥२॥चोथे खं हो जी ए वावीशमी ढाल,रामविजय कहे नवि नावें सुपो जी॥ पुण्य उप