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श्रीशांतिनाथनो रास खंम बीजो
॥दोहा॥ ॥ सुख जोगवतां अनुक्रमें, त्रिष्टष्ठ हरि ते पीत ॥ काल करीने ऊपन्यो, नर कावास अप ॥ १ ॥ सुख जोगवतां बहु परें, अर्ककीर्ति नूपाल ॥ व्रत लीधुं देश राज्य सुत, मूकी मोहजंजाल ॥ २ ॥ अचल बंधु नेहें घणो, रुदन करे तजि लाज॥नाईअवोट्यांथकी, एम केम सरशे काज ॥३॥ हसी वोलो मुफ वालहा, मूको रीप अलग्ग ॥ निपट निहेजा थायतां,
न रहे जेह एकंग ॥ ४ ॥ संस्कार करवा न दे, न मरे मारो वीर ॥ जे ____ कोई मून कहे, तस हणवा धाय धीर ॥ ५ ॥ यमुक्तं ॥ तीर्थकरणां सा , ब्राज्यं, सपत्नीवैरमेव च ॥ वासुदेववलस्नेहः, सर्वेन्योप्यतिरिच्यते ॥ १ ॥
बंधव ढुकोण पागलें, कहीश मननी वात ॥ समजाव्यो समफे नहीं, नेहें रंगी धात ॥६॥ नेहो कहवि न किज, अह किजा रयण कंवल सरितो॥ अहिएव धोयमाणो, सहावरंग न मे ॥ २ ॥ जाण अजाण थई रह्यो, मोहें घेयुं मन ॥ सहि जागुं वंधव मूळ, ज्यारे विरतुं तन्न ॥ ७ ॥ प्रेतकार्य करि बंधुनु, मोहवशे वलदेव ॥ उन मन निजराज्यथी, शीपु शलनी सेव ॥ ॥ श्रीश्रेयांस जिनवर तणा, स्वर्णकलश अनिधान ।। थाचारिन मुनि परवस्या, समवस्या उद्यान ॥ ए ॥ अचल चल्यो वंदण जणी, साथै लइ परिवार ।। मुनि वंदी देशन सुणे, जेहथीनव निस्तार ॥१०॥
॥ ढाल वही ॥ ॥ राग नट ॥ मोह संगतें बिगरी हेमति जनकी, स्वर्ग मृत्यु पाताल त्रिदं जगतमें, सवल उहाइ फरत उनकी। मो० ॥ एघांकणी ॥ दसएमोह चरण दोय ने, स्थिति नारी हे सबल जिनकी ॥ रोकी सनाव विनावमें धेरी, चेतन चाल धनादिनकी । मो० ॥ १ ॥ दोरत दोरत फिरत पवन ज्यु, हाथ न श्रावी दशा मनकी । हिनमें राग विराग तजत हे, यातप बांही न्युं मास सावनकी । मो० ॥२॥ धन रमणीके विपरसें रातो, जेमें मधुमारवी बनकी ॥ मदमातो नींतर ज्यों सूतो, खबर परे नहि रघतनकी 1 मो०॥ ३ ॥ तीन तार गले राग एनाची, तांचेकी लोटी गहि लोननकी ।। उंच नीच घर यंगण एण, व्हील मगाइये ज्युं बंननकी । मो० ॥ ४ ॥ धन्य जिणे मोह महामल जीत्यो, पूरित दशा नाठी गरणकी ॥ सो शुदा तम श्रातम पदवी, चदियो श्रेणि लही गुणकी । मो० ॥ ५ ॥ मोद