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श्री शांतिनाथनो रास खंग बो.
॥ अथ तृतीयस्थूल दत्तादानविरमण व्रतसंबंधः ॥ ॥ दोहा ॥
॥ स्थूल दत्त परित्यागनुं, व्रत त्रीजुं कहे स्वामि ॥ चक्रायुध नृप या गर्ने, सविनविजन हितकाम ||१|| स्वामी जीव गुरु तीर्थकर, यदत्त क च नेद ॥ चचनेदें ए साधुने, तजवुं तजि मन खेद ॥ २ ॥ कनकादिक स्वामी दत्त, नवि लीजें कोई वार ॥ सचित्त फलादिक भेदतां, जीवादत वि चार || ३ || तेह फलादिक जीवडे, नवि दीधां निज प्राण ॥ तेह नली जेवुं नहिं, सचित्त फलादिक जाण ॥ ४ ॥ गृही दीधुं पण साधुने, याथा कमी जेह ॥ तीर्थकर थापा नहिं यदत्त तीर्थकर तेह ॥ ए ॥ श्रावकने प्रागुक वली, नक्ष ने काय अनंत ॥ चावरतां तीर्थकरें, दत्त कयुं भगवंत ॥ ६ ॥ सर्वदोष निर्मुक्त पण, प्रनिमंत्री गुरु सार || जे जंजीजें ते को, गुरु दत्त सुविचार || ७ || स्वामि प्रदत्तनो इहां कणे, स्यूजवतें अधिकार ॥ यत्न करने जालवो, ए व्रत निरतिचार ॥ ८ ॥ चौरानीत न लीजियें, चौरप्रयोग निवार || सरस नीरस वेदु नेलीने, नवि कीजें व्यापार || ए || राज्यविरुद्ध न कीजियें, कूटतुला ने मान ॥ पंच दोप ए टालतां शुद्ध व्रत कयुं निदान ॥ १० ॥ तं ॥ चौरश्रोरार्पको मंत्री, नेद शः काकक्रयी ॥ यन्नदः स्थानदश्वेति चौरः सप्तविधः स्मृतः ॥ १ ॥ ॥ हाल चोवीशमी ॥
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॥ ध्यादि ए यादि जिणेसर, नानिनरिंद मल्हार || ए देशी || शांति जिनेश्वर एम कहे, सांजलो सवि नर नारी ॥ एह यतिचार टालवा. चौरसूति निवार ॥ जलवं ए कुशलनं पृतनुं संज्ञाकरण सुविचार || राजनोग्य धननिद्रव, श्रवलोकन तेम धार ॥ १ ॥ बहुं धमार्गनुं दर्शन, शय्यासमर्पण जालो | पदभंग जालीयें ग्राम्मो, विश्राम नवम खाणे || पादपतन शासन तिम, गोपन मन दन माहाराजिक, बर्जे ए सुगुणं तुजाणो ॥ २ ॥ पद हितकारक पय जल तेल न दीजें ॥ पाकने कारण यत्रिनुं दान कदापि न कीनें ॥ पानने ग्रंथ शीतल जल, दीघे एलान न लीजें | पशुबंधनने ए रहनुं दान देतां गुण तीजे ॥ ३ ॥ प्रसूति यदार ए. जामी करे जेह त्याग ॥ सुजस महोदय ते जसे दिन दिन aftaar |
नवि थाणो, खं खा