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३४७ जैनकथा रत्नकोप नाग आग्मो. ड रे ॥ सा ॥ चिंते सुबुद्धि तरु नवि कहे, सुर्बु रच्युं सवि आल । रे ॥ सा ॥ २० ॥ वटकोटरथी नीसरी, वाणी नरनी ए आज रे ॥ सा ॥ सांकेतिक सही इहांकणे, कोइ नरथी थयु ए काज रे ॥ सा ॥ २१ ॥ कर जोडी कहे जूपने, में देवं धन नन्नास रे ॥ सा ॥ पण जो दुकम होय राउलो, तो ढुं करूं एक अरदास रे ॥ सा० ॥ ॥ कहे राजा सुखें विनवो, कहे में लीधुं धन तेह रे ॥ सा० ॥ पण ए तरुको टर विचें, मूकीने गयो निजगेह रे ॥ सा ॥ २३ ॥ एक दिन लेवा था धावियो, तब दीतो इहां अहि एक रे ॥ सा ॥ फण मांझी कपर रह्यो, नयंकर दीसे अति लेक रे ॥ सा ॥ २४ ॥ मुफ धन अधिष्ठायक यई, रह्यो जो कहो तो हणुं देव रे ॥सा ॥ राय अनुज्ञा तब दुई, करो कारिज - वहेला हेव रे ॥ सा ॥ २५ ॥ शर्पण गण लेई घणां, तरुकोटर पूरे सुबुद्धि रे ॥ सा ॥ अग्मियी धूम थयो घणो, गइ न तणी शुद्ध बुद्धि रे ॥ सा ॥ ३६॥ लोचन अकुलाणां घj, पड्यो उबलीने नूपीठ रे ॥ सा ॥ पुरपति पुरजन सदु मल्यां, नशेठने प्रत्यक्ष दीप रे ॥ सा० ॥ २७ ॥ पूढे सकौतुक सद् तिहां, कहे सुत कुष्ठं मुफ लाज रे ॥ सा ॥ खोवरावी सदु शहेरमां, एवं की, नीच अकाज रे ॥ सा ॥ २ ॥ कूडी साख जरावीने, जव इजातनो कस्यो नाश रे ॥ सा ॥ मुफ जेवो जड को नहिं, पड्यो मोहतणे ढुं पाश रे ॥ सा ॥ ए ॥ वाक्य अ लिक मुझने फल्युं, एहिज नवमां नरदेव रे ॥ सा ॥ एम जाणीने सदु तुम्हें, मत राखो अलिकनी टेव रे ॥ सा० ॥ ३० ॥ जश्नणी राय मू कियो, तस सुत तेडी नूपाल रे ॥ सा० ॥ धन सघळु ले करी, पुर वा हिर कयो तत्काल रे ॥ सा ॥३१॥ मुहि जणी सन्मानियो, दे वस्वानरण अमूल्य रे ॥ सा ॥ नृप जन सहु घर भावीयां, जग एह असत्यतुं शूल रे ॥ सा० ॥ ३२ ॥ इह परनव दुःखदायकु, जागीने असत्य तजो दूर रे ॥ सा ॥ सुण चक्रायुध राजीया, सत्यथी होय सुख नरपूर रे ॥ सा ॥ ३३ ॥ व्रत वीजा उपरें कह्यो, प्रनुजीये संबंध रसाल रे ॥ सा ॥ हे खमें त्रेवीशमी,कही रामविजयें ए ढाल रे ॥सा॥३४॥ , इति मृपावादविरमपाहितीयव्रते नश्लेष्ठिकथानकाशासर्वगाया५॥३६