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श्री शांतिनायनो रास खंम व्हो. ३४ए ॥ अथ तृतीयस्थूल अदत्तादानविरमण व्रतसंबंधः ॥
॥दोहा॥ ॥ स्थूल अदत्त परित्यागर्नु, व्रत त्रीजुं कहे स्वामि ॥ चक्रायुध नृप या गले, सवि नविजन हितकाम ॥१॥ स्वामी जीव गुरु तीर्थकर, अदत्त कह्यु चव जेद ॥ चग्नेदें ए साधुने, तजq तजि मन खेद ॥ ॥ कनकादिक स्वामी अदत्त, नवि लीजें कोई वार ॥ सचित्त फलादिक नेदतां, जीवादत्त वि चार ॥ ३ ॥ तेह फलादिक जीवडे, नवि दीयां निज प्राण ॥ तेह नगी लेवु नहिं, सचित्त फलादिक जाण ॥ ४ ॥ गृही दीg पण साधुने, प्राधा कर्मी जेह ॥ तीर्थकर आणा नहिं, अदत्त तीर्थकर तेह ॥ ५ ॥ श्रावकने प्रागुक वली, अनद ने काय अनंत ॥ वावरतां तीर्थकरें, यदत्त कह्यु जगवंत ॥ ६ ॥ सर्वदोप निर्मुक्त पण, अनिमंत्री गुरु सार ॥ जे मुंजीजे ते कह्यो, गुरु यदत्त सुविचार ॥७॥ स्वामि यदत्तनो इहां कणे, स्यूलबतें थधिकार ॥ यत्न करीने जालवो, ए व्रत निरतिचार ॥॥ चौरानीत न लीजियें, चौरप्रयोग निवार ॥ सरस नीरस वेदु नेलीने, नवि कीजें व्यापार ॥ ॥ ॥ राज्यविरु६ न कीजिये, कृटतुला ने मान ॥ पंच दोप ए टालतां, शु६ व्रत कयुं निदान ॥ १० ॥यक्त। चौरश्चौरार्पको मंत्री, नेद ः काणकक्रयी ॥ अन्नदः स्थानदश्शेति, चोरः सप्तविधः स्मृतः ॥ १ ॥
॥ दाल चोवीशमी॥ ॥ न्यादि ए यादि जिणेसर, नानिनरिंद मल्हार ॥ ए देशी ॥ शांति जिनेश्वर एम कहे, सांजसो सधि नर नारी ॥ एह अतिचार टालवा. चारप्रसूति निवार ॥ नलवु ए कुगलनु पूल, संडाकरण सुविचार ।। राजनोग्य धननिद्रव, अवलोकन तेम धार ॥ १ ॥ पहुं थमार्गनुं दर्शन, शल्यासमर्पण जाणो ॥ पदलंग जाणीये श्राठमो, विश्राम नवम गवाणो ॥ पादपतन थासन तिम, गोपन मन नवि यायो, बम रखा दन माहाराजिक, बजे ए मुगुण सुजाणो ॥ ५॥ पद हितकारक पय, उसण जन तेल न दीजें ॥ पाकने कारण यामिनु. दान कदापि न कीजें॥पानने प्रथ शीतल जल, दीधे ए लान न लीजें ॥ पशुबंधनने र रकन, दान देतां गुण वीजे ॥३॥ चौरप्रसूति न्यदार , जागी करे जंद त्याग ॥ सुजत महोदय ते लते, दिन दिन यधिक सोनाग ।