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शुण्य
जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. ॥अथ षष्ठखंमस्य प्रारंनोऽयम्॥
॥दोहा॥ ॥ सुखकर साहिब सेवियें, त्रेवीशम जिन पास ॥ श्रीशंखेश्वर प्रगट प्रनु, नामें लीलविलास ॥ १ ॥ वासवपूजित चरणकज,वंदू दीनदयाल ॥ परगट परतो पूरवा, चिंतामणि सुरसाल ॥ २ ॥ ही अहँ पासजी, मूलमंत्रनो जाप ॥ धापद सवि दूरे टले, मटे मोह संताप ॥ ३ ॥ अश्व सेनकुलदिनमणि, वामामात महार ॥ ते जिन प्रणमीने कहुँ, बहो खंम सुखकार ॥ ४ ॥ जिनगुण केरी संकथा, करतां नासे पाप ॥ उग्ध सिता चित्त विषु पीये, तोहि नासे सवि ताप ॥ ५ ॥ शांतिनाथ शोलम। विलु, कहेतां तास चरित्र ॥ नवकोटिक पातक टले, थाये जन्म पवित्र ॥ ६ ॥ सर्वारथ सुख जोगवी, तेत्रिश सागर थाय ॥ चवि तिहाथी जिहां। अवतरे, ते निसुणो चित्त लाय ॥ ७ ॥
॥ ढाल पहेली ॥ ॥ चिंतामणि स्वामी, सच्चा साहिब मेरा ॥ ए देशी ॥ जंवुदीपमां ददि । ण जरतें, आदि जिणंद सुखकारी ॥ तेहनी संततिमां दुन रे, कुरुनामें नृ. पति सुविचारी ॥ १ ॥ शांतीश्वर जिनकी, सुणो कीर्ति सारी ॥ ए श्रांक णी ॥ तिण नामें कुरुदेश अनोपम, दुर्ग संपद गुणधारी ॥ तास तनय हस्ती तेणें नामें, हस्तिनापुर अवतारी ॥ शांतीश्वर ॥ २ ॥ ते दक्षिणा नर सुरपुरसुंदर, शोना समुदयनारी ॥ चोराशी वाजार विराजित, दीपे यति मनोहारी॥ शां० ॥३॥ एक भूमि दोयनूमि त्रिनूमिक,चन पंच जूमि प्रकारी ॥ सुर आवास जिस्यां जिहां मंदिर, निवसे सुखी नर नारी ॥ शां० ॥ ४ ॥ सदु जिनधर्मी जिनेश्वर गुणने, गाये नित्य अगारी ॥ दान दया धर्म जिहां अति दीपे, सदु कोई शुन आचारी ॥ शां० ॥ ५ ॥ इक्ष्वाकुवंशी तिहां विश्वसेना, निध नरपति रतिकारी ॥ न्यायें राज्य प्र जापति पाले, दुरे इति निवारी ॥ शां० ॥ ६ ॥ स्वामी अमात्य सुखद बल शोजित, कीर्ति कामणगारी ॥ चिटुं दिशिमाहे वध्यो जस महिमा, रेख नहिं कांड कारी ।। शां० ॥ ॥ तस घर रमणी रूप यरुत, रति रंना पण हारी ।। अचिरा नामें सती सत्यवंती, दान अजयदातारी