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श्री शांतिनाथनो रास खंम हो. शय ॥ शां० ॥ 5 ॥ एकदा नाइपदें वदि पदें, सप्तमी तिथि अंधियारी ॥ नर गीगत चंई मेघरथजीनो, जीव ते रयणी मजारी ॥ शां० ॥ ए ॥ सरवा रथ सिढूंती चवियो,यचिरा उयरें सुविचारी॥ गुनवेला श्रावी ऊपन्यो, पुत्रपणे अवतारी ॥शां०॥१॥ कांइक सूती कांक जागती,सुपन लहे दश चारे ॥ पहेला हो गजवर तपन ए वीजे, चिंतित कान सुधारी॥ शां० ॥ ११ ॥ त्रीजे सिंहप लक्ष्मी चोथे, सदु सुखनी करनारी ॥ पंचमे माला हो हे निशाकर, दीठो हो धारति टाली ॥ शां० ॥१५॥ सातमे सुरज आ में ध्वजवर, कीर्ति कांति वधारी ॥ नवमे कलश सरोवर दामे, पेखे हो हर्प अपारी ॥ शा० ॥ १३ ॥ सिंधु अग्यारमे वारमे अमरतुं, मंदिर दीतुं उदारी ॥ रत्ननो राशि ए तेरमे चनदमे, निर्धूम अनि विचारी ॥ शां० ॥ १४ ॥ हर्पनरें जागी सा सुंदरी, सुपन देखि दुःखवारी ॥ श्रावी हो कंत समीपं जगाडे, पीयुने हो अचिरा प्यारी ॥ शां० ॥ १५ ॥ विश्वसेन जा ग्या तब देखे, यागें मोहनगारी ॥ श्रासन आप्यु हो वेसण काजें, वे हो अचिरा नारी ॥ शां०॥ १६ ॥ वालमजी मध्यरात्रिनी वेला, उहिरमाणी करारी ॥ दीनां हो चनदे सुपन मनोहर, फल कहो श्रुत अनुसारी ।। शां० ॥ १३ ॥ राय सुणी हरव्यो मनमांहे, सुपन सबल सुरवकारी ॥ मतिपूर्वक निज बुद्धि विन्नाणे, अर्थ कटे तिए वारी ।। शां० ॥ १७ ॥ नुत हो। कुलदीपक रुडो, सद्ध जगने उपकारी ॥ कहे राणी तुम बचन ए मुफने. सफल होजो हितकारी । शां० ॥ १५ ॥ लेइ श्रा या निजसेजें यावी, अचिरा हो मंथरचारी ॥ कहे मुफ सुपन रखे ए ह गाये, अगुने हो एम निर्धारी ॥ शां० ॥ २० ॥ देव गुरु संबंध कथायें, करे जागरण संनारी ॥ ययो प्रजान दुवो जय जय रख, बंदीजन जयका री ॥ शां० ॥ २१ ॥ वहे हो खमें पहेली टालें, करे जिनगुणयुं चारी ॥ राममुनि कहे ते धन जगमां, जाउं उनकी बलिहारी । शां० ॥२२॥२॥
॥दोहा॥ ॥ विश्यमेन राजा मना, बेवो प्राधि उमंग ॥ सुपनवाबना जाणने, नेहाचे मन रंग ॥१॥ ग्राउ जणा तब प्राविया,निमित्त यंग अह जाग । देश यागिप वेना सवे. प्रामन प्रति मंमाण ॥२॥ सामान्या या. पूरे सुपनविचार । कड़े सुपनपाठक तदा, शास्त्र तामा थधिकार ॥३॥
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