________________
जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. तस्यो, वारू वयण समाज ॥ १ ॥ स्वामी पधारो बांगणे, करो पावन । मुज गेह ॥ अरज अमारी चित्त धरो, जो मुझ ऊपर नेह ॥ २ ॥ कहे । राजन तुमझुं सदा, नहिं अंतर वत्सराज ॥ माटें जोजननो किस्यो, अव ' सर घर आज ॥३॥ वत्सराज कहे साहिवा, ते गुज अवसर जाणि ॥ । जिए दिन राज पधारशो, मुफ बांगणे गुणवाणि ॥ ४ ॥ कृपा करीने . हा नगो, मुफ मन हर्पित होय ॥ हहूती नृप मानीयुं, निसुणी । हरव्यो सोय ॥ ५॥
॥ ढालगणत्रीशमी ॥ ॥ गेंउडानी देशी ॥ घरे आवी सवी वात प्रकाशी, मनमां धरी उ त्साह ॥ अलवेलो रंगीलो नाह, अलवेलो हनीलो नाह, अलवेलो बवीलो नाह ।। अलवेलो० ॥ ए आंकणी ॥१॥ वायुं अमारुं न करे वहालो, मन मां सुरखरी चाह ॥ अलवेलो॥ २ ॥ जामिनीशुं वनोपरिजूमें, लाग्यो क्रीडामांहि ॥ अल ॥ ३ ॥ रमपी साथें रसनी वातें, तिहां वेला बहु वही जाय ॥ अल ॥ ४ ॥ राजन चिंते हजी झुं न आव्यो, तेडण ए वत्स एण गय ॥ अल ॥ ५ ॥ नृप चिंते चित्तमां एहने घर, शी साम ग्री थाय ॥ अ०॥ ६ ॥ जोवा कारण चर एक मूक्यो, पोतानो तेणें राय ॥ ॥ ७ ॥ चर जोवे जइ घेर निहाली, नवि देखे रसवती कां ॥ अल ॥ ७ ॥ परकाशे नूपतिनी आगे, सेवक पाटो आई ॥ अ० ॥ ए॥ पुनरपि वीजो नर तिहां आवी, जुवे सजाइ तास ॥ अ० ॥ १० ॥ कहे नृपने घर धूम न दीसे, शी नोजननी पाश ॥ ५० ॥ ११ ॥ चिंते नृप जुन कीध नगाई, मनमांहि एम उदास ॥ अ॥ १२ ॥ तव ते नो जन अवसर जाणी, वत्स याव्यो सुविलास ॥ अ० ॥ १३ ॥ कहे राजेश्व रने कर जोडी, पाउधारो मुफ आवास ॥ अ० ॥ १४ ॥ याय हवे असुर नोजनने, उठोजी लील विलास ॥ १० ॥ १५ ॥ नृप कहे शी हांसी मुज साथें, मामी सुगुण निवास ॥ ॥ १६ ॥ विण सामग्री तेडे अ मने, ए तुमने सावाश ॥ अ० ॥ १७ ॥ कोइ न मल्युं बीजुं हांसीने, नांग्यो तुज विश्वास ॥ अ० ॥ १७ ॥ कहे वत्स तुं मुफ़ साहिब तहारो, ढुं हुं चरणनो दास ॥ १० ॥ १९ ॥ तुम हांसी करतां यहां महारी, कुजलजा जाय नासि.॥ य० ॥ २० ॥ गुं तुम रसवती के कारण,