________________ ___ श्री शांतिनाथनो रास खंग हो. 437 अग्यावीशमुं मोहवें स्थानक, ए दारव्युं जिननाहें रे // ज० // 34 // देव तणी द्युति झदि ने वीरज, बल यश वर्णविशेप // तास अवर्ण जे बालम ति कहे, नहिं तेहमा गुणरेख रे ॥न // 35 // नवि देखे ने कहे दुं देखु, देव अने वली यह // अज्ञानी जन पूजा अर्थी, बांधे मोह प्र त्यद रे // ज० // 36 // ए त्रीशे स्थानक सेवंतो, महामोहनो अधि कारी // जाणीने तुमें विरमो एहथी, कहे गणधर नपकारी रे // // 37 // ढाल सत्तावनमी खंम बछे, गणधर देशना दीधी // समकितष्ठि जे नर नारी, श्रवणपुटें करी पीधी रे // ज० // 3 // सर्वगाथा // 21 ए६॥ ॥दोहा॥ // श्रीचक्रायुध केवली, देशन अमृतसार // नविक जीव के बू जवी, कतास्या नवपार // 1 // आयु जाणी अवशेष निज, थोडं गण धर देव // बदु साधुगुं परिवस्या, सारे सुर नर सेव // // जरत देत्र मध्य खममां, पावन तीरथ सार // कोटिशिलानिध ने नलुं, नामें नव निस्तार // 3 // श्री चक्रायुध केवली, विचरंता मुनि साथ // कोटिशिलायें धाविया, जगतारण जगनाथ // 4 // असा की, तिहां कणे, बद्ध केवलिपरिवार // श्री चक्रायुध गणधरु, पाम्या शिवपद सार // 5 // कालें कोटिशिलाविपे, सिदा मुनिवर कोडि // चक्रायुध सिक्षा पनी, वंदूं वे कर जोडि // 6 // // ढाल अभवनमी॥ // षन जिणंदा कपन जिणंदा॥ ए देशी // तीरथ वंदो ए तीरथ वंदो, कोटिशिलानिध जेम चिर नंदो // कोडि गमे गया जिहां मुनि मुक्ते, ते तीर्थ प्रगमो नवि नक्तं // ती० // 1 // श्री चक्रायुध गणधर सिक्षा, शांतिप्रनुवारें परसिक्षा // ते पूठे मुनि संख्यात कोडि, मुक्तं गया प्रणमुं कर जोडी // ती० // 2 // कुंथु जिणंद दुधा जगवंता, सत्तरमा जिन गिरुया गुणवंता // संरख्यात कोडी तस तीरथ सिक्षा, मुनि वंदो गुण रयण समिक्षा // ती० // 3 // श्रीधरनाथें तीरथ तरिया, द्वादश कोडि मुनि शिवपद वरिया // एह शिला उपरें पुःख वारी, सिम यया जा बलिहारी॥ती० // 4 // मनि जिणेसर त्रिनुवन स्वामी, सुर नर यावी नमे शिर नामी // ए प्रनु तीरथें मुनि पढ़ कोडी, शिव पाम्या प्रामो