________________ जैनकया रत्नकोप नाग आरमो. क रहित सचिव नरपतिनो,राज कलत्र विधंसी // अर्थावगम उपाय जणी तेम, ध्वंसे ते पूरो कंशी रे // न॥ 17 // सामंतादिक परिकर नेदे, तस थधिकार पडावी // धिग यश् हरे जोगने परना, शुनमति मूके मावी रे // ज० // 17 // नहिं कुमार कहे बालकुमारो, ब्रह्मचारी लोक आगें // स्त्री . वशवर्ती अग्यारसुं स्थानक, सेवतो जाणशे धागे रे // ज० // 1 // न / हिं ब्रह्मचारी कहे ब्रह्मचारी, बारमुं स्थानक माटुं / जस निष्ठा विचरे ते हनुं धन, ताके ते पातक का रे // ज० // 20 // अगईश्वर ईश्वर जेणे कीधो, परिगल वित्त घर पामी // ईर्ष्या क्षेप धरे स्वामीगुं, तेहमां महोटी खामी रे // ज० // 21 // जेम सापिण अंमकपुट निहणे, तेम पोपकने मारे // सेनापति शास्तार प्रत्ये ते, रूढो नहिं आचारें रे // ज० // 22 // . देश तयो नायक जे दीसे, निगम तणो अधिकारी // शेव वदुयशने जे मा रे, शोलमुं ए नाग नारी रे // ज० // 23 // बहुजनना नेता प्राणीने,त्रा एजे हीप समान // प्रावचनी नरने जे निहणे, सत्तरमुं कर्तुं गण रे / / न० // 24 // संवतविरति उपस्थित तपसी, धर्मयकी चूकावे // महा मोहनो वंध करे ते, मुफ मनमां न सुहावे रे // न // 25 // जिन य नंत नापी वरदंशी, तेहनो अपयश वोले // एकोनविंशतितम ए स्थान क, सेवतो कहो कुण तोल्ने रे // // 26 // नैयायिक मारग अपका री, बदु जनने नंगेरे / जावयतिनिंदी ए महेलो, फरशे चिटुं गति फेरे रे // // 27 // आचारिज उवजायें जणाच्यो, सवल थयो श्रुतपाती / / वाल करे खिंसा वली तेहोनी, मति तेहनी घणुं माती रे // // 27 // आचारिज उवमायने न करे, सम्यग् जे उपगार // अप्रतिपूजक तेहनो जे नर, तास अकज अवतार रे॥ना // 2 // त्रेवीशमुं स्यानक अवदुश्रुत, वश्रुत नाम धरावे॥चोवीगमे अत्तवस्ती तपीयो, हुँ एम कीर्ति गवावे रे ते // ज० // 30 // ग्लानतवेवावच न करे, समरथ इंतो जेह // एवं न क नवि करो ए माहरे, महामोद वांधे तेद् रे // ज० // 31 // जे ह कथा याधिकरण प्रयुंजे, तीरय नेद करंतो // तबीश, महामोदन स्या नक, बोधि न पामे मरतो रे // न // 32 // जे याचर्मिक योग प्रयुंजे, निमित्त वशीकरणादि // लाया मित्र तणे वली देतें, महामोहनी उ न्माद रे // न० // 33 // जे मानुष्यक नोग अतृप्तो, पारलौकिकने चाहे //