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श्री शांतिनाथनो रास खंमत्रीजो. नए - सकलकला शीखी लघुवयथी, अनुक्रमें बोवन यायो रे ॥ सुख विलसे - परणी नृपकन्या, दिन दिन चढत सवायो रे ॥ २० ॥ २२ ॥ त्रीजे खमें
पहेली ढालें, रामविजय कहे वाणी रे ॥ वेद बंधव सुख विलसे बहुला, नेह निविड गुण खाणी रं॥२३॥ सर्व गाथा॥३१॥श्लोक गाथा मलीने ॥१५॥
॥दोहा ॥ ॥ इस अवसर तिण नयरीय, उपशमजलें अगाध ॥ शमदमवंता याविया, नामें स्वयंप्रन साध ॥ १ ॥ समवसरया वननूमिका, मुनि म .
हंत महनीय ॥ शूरा थइ सूधा सहे, जे जे वे सहनीय ॥ २ ॥ एहवे .. रयवाडी चढ्यो, स्तिमितसागर राजान ॥ वसतां वीशामा जणी, थाव्यो
तिण उद्यान ॥ ३ ॥ दीगे मुनि कंकलितरु, नीचें निश्चल ध्यान ॥ साधे योगदशा नली, मुनि रहियो एक तान ॥ ४ ॥ वंदी कर जोडी कहे, धन्य धन्य गुणपात्र ॥ धन्य धरामां ते नरा, जे करे तुम्हारी यात्र ॥ ५॥ तुम पेखे पावन थयां, मुज लोचन माहाराज ॥ रुपा करी धो देशना. गिरधा गरिव निवाज ॥ ६ ॥ काउस्सग्गपारी प्रेमगुं, वेठा उत्तम ठाम ॥ कहे उपदेश सोहामायो, शमरसगुणना धाम ॥ ७ ॥
. दाल बीजी। ___॥ नणद हतीती ॥ ए देशी ॥ सुण सुण रे राजन रढियाला, कथा एकपायना चाला रे ॥ सुण राजन रदीयाला ॥ एयांकपी । सुवसन ने चली फुल, माणसने मेलें धूल रे । सु० ॥ इह जब परनय कुःखदायी, एह लाथें अनादि सगाई रे ॥ ॥१॥ दोय नामें जग धंधोल्यो, तव लिमितसागर नृप बोल्यो रे ॥ नु० ॥ प्रनु कहो एहना कति बेद, केम पाम्यो एनधी खेद रे ।। सु० ॥ ॥ कहे मुनिवर दोपथी हुवा चार, वाघ्यो एडनो विस्तार रे ॥ ४० ॥ पढेलो क्रोध ने बीजो मान, माया त्री जीने लोजन्यमान रे । सु० ॥ ३ ॥ तुकाधयकी सुंघाचे, श्रहोंनिश बातम थाटाने रे ।। सु० ॥ पन मानकी मति जावे, अठता पण गुण गवगवे ।। नु०॥ ॥ माया विषवेली लमाणी, तेगुण टंकप सुपरजाणीरे ॥ ५ ॥ लोन नघि टकवा ये मननें, जाणे मेलु मेनुं यदु धनने ॥ १० ॥ ५॥ एकेकना नेद ने चार, कहे मुनि करूणानंमार ॥ सु०॥ कोप पहेलो अनंतानुबंधी, न टले जेहनी के संधि रे ॥ ॥ ६ ॥ करे