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श्री शांतिनाथनो रास खंम पांचमो. ४ माइ महारा राज, एम आवे उदे ॥ पंचम खमें हे, राग अखंमें चौदमी ढाल हे, कविण न कीजें महारा राज रामविजय वदे ॥१॥४४॥२३॥
॥दोहा॥ . ॥ विमलाने कहे धारिणी, जाउँ नयर मकार ॥ जो आवो कोइ था शरो, बहेनी प्राणाधार ॥ १ ॥ तुं मुज जीवननी जडी, थइ सुखनी सा रीख ॥ साची तुं मानी जणी, जली कबूली जोख ॥ २ ॥ विमला श्रावी नयरमां, इत उत जोवे नाम ॥ पण कोइ वोलावे नहिं, बाई श्रावो आम ॥ ३ ॥ एक लक्ष्मी वा विना, धाइ न दे को मान ॥ जया शहेरमां नामिनी, फिरे विहूपी शान ॥ ४ ॥ सोमदत्तने मंदिरे, ना मिनी जमतीनूर ॥पहोतीप्रेमें पारखी, दीसे कोई सनूर ॥५॥ तात विदेशी j धमो, मुफ नगिनी जाणेज ॥ वसवानी कोइ जायगा, वतलावो धरि हेज ॥ ६ ॥ कहे शेठ प्रा उरडी, वसवानीठे खास ॥ पण नाडु देशो किस्युं, आगलपी परकाश ॥ ॥ विमला कहे गुं यापीयें, नाटक नहिं कां पास ॥ पण स्वामी घर ताहरे, थई रहेगुं दास ॥ ॥ नो जन अमने आपजो, शेत तमे शिरदार ॥ कुंजर मुखथी कण गिरे, कोडीने आधार ॥ ए॥ वात कबूल करी तेणे, यावी बहेनी पास ॥ तेडीलावी धारिणी, चंगज सहित नन्नास ॥ १० ॥
॥ढाल पन्नरमी॥ ॥ एण सुगरीये मन मोहियुं ॥ ए देशी ॥ धारिणी विमला वत्सराजगुं, तिहां ावी रही गुन लामो ॥ करे सोमदत्त शेतनी चाकरी, जुकर्म तणा ए कामो ॥ १ ॥ जग कीया हो कर्म न वृदिये ॥ एयांकगी। एम जांखे हो त्रिनुवन नाय ।। सुर असुर नरादिक सांजले, सद्ध सांगले मुनिवर साथ ॥ ज० ॥ २ ॥ जीहो उदरनर यति दोदिवं. करे परघर के काजो ॥ वत्सराज चिंते चित्तमां घj. हा हा किहां गयुं महानं राजोज॥३॥ जीदो मुज माडी माती बडी, करतां जेहनी बढ़ सेवो ।। ते पाणी नरें परवर रही, श्रदो अहो ए मु कयं देवो ॥ ज० ॥ ४ ॥ चन्तराज चरावे हो बारु,जेमतेम चाले गुजरानो॥ वनमा जमतां एकण दिने. वीशमियो शुन तस्वगणो ॥ ज० ॥ ५॥ राजकुंवग्ना गन्द सुण्या तिहां करे शन्य तणो अन्यात ॥ धेनु चरती हो मृकीने वत्सली,तिहां पहों