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तह देखी तिहां, यस समजाय ॥ ज कलाकुशल पाणतणा, अतिशनार
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श्वत जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. तो धरि ननासो ॥ ज० ॥ ६ ॥ तेहमांहे जइ कनो रह्यो, जोवे लक्ष्नो वेध सुजाणो ॥ यदि चूके समीपग नर तदा, तव थाये वदन' । मलाणो ॥ज॥७॥ जेह विंध्य न भूले हो तेहने, प्रशंसे थश्ने खुशालो॥ तेह देखी कलाचार्य चिंते, कोई दीसे कोविद बालो ॥ज ॥ तव पूज्यु कलाचारज तिहां, वत्स तुं कोण किहांथी रे आव्यो ॥ वत्सराज कहे हुँ तातजी, देशांतरी एम समजाव्यो ॥ ज ॥॥ कहे आचारज हर्षे करी, वत्स लेइ करे धनु तीरो ॥ देखाड कलाकुशल पणुं, अम पागल सा हस धीरो ॥ ज० ॥ १० ॥ अवसर जाणीने कला तणो, अतिशय प्र कासे वीरो ॥ जो कुंवर सद् चित्त चमकिया, अहो गुणजलनिधि गंजीरों ॥ ज० ॥ ११ ॥ जीरे जोजन याव्यां हो जावतां, राजकुंवरने काजें रसालो । गुणी जाणीने पासें बेसारीयो, जमाड्यो नाग्य विशालो ॥ जण ॥१२॥ यतः ॥ कला कलौ कामगवी समाना, सर्वार्थसंसाधनसाव धाना ॥ कला विदेशे परमं हि मित्रं, कलासमं नास्त्यमृतं पवित्रम् ॥१॥ पूर्वढाल ॥ जीरे संगति सरखानी मली, मन पाम्यो हो प्रीति अपारो ॥ गुणीने हो गुणीशुं गोठडी, सङ जाणे रे एह विचारो ॥ ज० ॥ १३ ॥ यतः ॥ मृगा मृगैः संगमनुव्रजति, गावश्चगोनिस्तुरगास्तुरंगैः ॥ मूर्खाश्च मूखैः सुधियः सुधीनिःसमानशीलव्यसनेषु सख्यम् ॥२॥ पूर्वढाल ॥ दिन वो वहि गयो वातमां,रखवाल विना वत्स तेहो। समकालेंवलि तेह आवियो, पुरमा सोमदत्तने गेहो ॥ ज० ॥ १४ ॥ कहे शेवजी विमलाने तिहां, आज वहेलां केम वत्स रूपो ॥ रखवाल एहनो क्यां गयो, वत्सराज ए कवर्ण सरूपो ॥ ज० ॥ १५ ॥ वाल नावे ए साथें रूडं नहीं, एम वात करतां तेहो ॥ वत्सराज अाव्यो संध्यासमे, मल्यो मायने अधिक सनेहो ॥ज॥१६॥ वत्त वेता केम य एवडी,कहे कल्पित वात विचारी ॥ मुक नंघ यावी वनमा घणी,रह्यो सूइतिहां निर्धारी ॥ज०॥१७॥ कोक यावीने जगाडीयो, हमणां ढुं आव्यो माडी ॥ वत्स एम असुर न कीजिये, कहे विमला हो प्रीति जाडी ॥ज॥१॥ तिम वली वीजे दिन एम रह्यो, तीजे दिन एमज कीg ॥ शेठे उतनो दीधो घणो, एहयी मुज काज न सीधं ॥ ज० ॥ १५ ॥ कहे रीप जराणी मावडी, परदेश याव्यां इण वामो ॥ परमंदिरवास ए कष्टथी, जोजन पर हाथ ए कामो ॥ज॥२॥
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