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श्४६ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो बुध वीसरी ॥ १ ॥ धिक् धिक् सुतने हे, नेहडलो बग्मीने दीधो ले । ह हे,नफट निहेजो महारा राज,राजा ए दुवो॥कांहिं न चाले हे,जोरावर जे . आपण कीधां कर्म हे, नदयें एम आवे महारा राज, प्रत्यद ए जुन ॥ २ ॥ कोई न करशो है, कोई न करशो गर्व गुमान है, साथें ने कमाइ महारा राज,आवे थाहरी ॥ सदु स्वारथना हे,स्वारथना सदु ए में जगमां मित्त में हे,पडती रेवेलामां महारा राज,नको पाहरी ॥३॥ रोयण लाग्यां है,पुरवा सी साजननां द्वंद दे, फट फट रे अन्यायी महारा राज, दैव तें झुं कस्युं ॥ वत्स सारीसा हे, वत्सने सारीसा कुमर सुजाण हे,वनमां रे काढतां यारं राज, काज किस्युं सयुं॥धासाजन महारा हे,में बां थाहारा पगनी रजने तोल दे,प्रजा पोकारे उनी राज,जीवनजी रहो ॥ साहिब महारा दे,ए दुः कवण विचार है, उना रे रहीने महारा राज, वातडली कहो ॥५॥ कुंवर बोले हे,सदुने जे महारो जुहार हे,गुनह खमेजो महारा राज,जे कीधो होय थाहरो॥ कुंवर बोले दे,वहेलां मिलस्यां ावी कहेस्यां वात हे,हमणां रेनट काये महारा राज,वीरो कोप्यो माहरो॥६॥ पुरशुं चाल्या हे,साथें माता ने मासी दोय हे,आगल चालतां वाटें राज,सवल वेला पडी ॥ कुंवर नानो है, साथे घरडी मोकरडी दोय नारी हे, मारगमांहे नूलां महारा राज, एम आपद नडी॥७॥कोने कहीयें हे,कोने कहियें सुख उखडानी वात हे,एवो रे नहिं कोइ महारा राज,कान देई सुणे ॥ त्रिदु जण चाले हे,त्रिदु जण किहां इक सरोवरीयारी पाल दे, ननां रे न राखे महारा राज, कोइ घर बांगणे ॥॥ मोशी महारी हे,दीसोबो सवल मुंहाली जाति हे,कहोने किण कार ए महारा राज,सुत लेइ नीसयां ॥ सुखनी मारी है, धारिणी राणी कहे ताम हे,अमें दोय मोशी महारा राज, मरमेश्वरनां विसस्यां ॥ए। दुःखनी मारी हे, कंथ विहूणी सुत लेइ साथ दे, चाल्या रे वर्तवा महारा राज, अमें परदेशमां ॥ उत्तर देवे हे,उत्तर देवे लोक जणी ते अाम हे,कोई नथी रे महारा राज,एवा वेशमां ॥१॥ अनुक्रमें आया हे, देश अवंतीमांहे नय रि उलेणी हे, वाडीमां वडनाया महारा राज, वीशामो लियो ॥ धारिणी चिंते हे,फट फट रे तें दैव की\ ए कीध है, मुने वीरसेनवधूने कष्ट सबल दीयो ॥११॥ नविका सुगजो है, कहे घनरथजी अरिहंत हे, कीधी रे क