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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
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घात || सिद्धथकी पण अनंत गुण, जेहमां जीवसंघात ॥ ८ ॥ यतः ॥ नृच्योनैरविकाः सुराश्च निखिलाः पंचाछतिर्यग्गणोपाद्याज्वलनोयथोत्तर ममी संख्यातिगा जापिताः ॥ तेयोनूजलवायवः समधिकाः प्रोक्ता यथानु क्रमं सर्वेन्यः शिवगा अनंतगुणितास्तेयोप्यनंतांशगाः ॥ १ ॥ पूर्वढाल ॥ नाम कह्यां वत्री तस, प्रारिजदेश प्रसिद्ध ॥ गुणव्रतबीजे धारीने, परिह रियें मति शुद्ध ॥ ए ॥। १ सुरणकंद निवारीयें, श्वज्रकंद तेम धार ॥ राईहरिश परिहरो, शृंगवेर विनिवार ॥ १० ॥ पचाईकचूर पशता वली, ७ विरालिका दोय वेलि ॥ तिम कुंवार स्योदर १०गलो, ११ लगुन कंदने मेल ॥ ११ ॥ १२वंशकरेल १३गऊर वली, जे वली १४साजी याय || ते लवकने वरजियें, एम वोले जिनराय ॥ १२॥ लोटक१ एपद्मि निकंद तेम १६ गिरिकर्णिका विचार ॥ १७ किसलय पत्र १८खरिंशुका, १ एथेगकंद अवधार ॥ १३ ॥ २० आईमोथ ए वीरामी, २१ भ्रमर वृनी बाल || लोकप्रसिद्धां २२ खिल्लहड, २३ अमृतवेलीने टाल ॥ १४ ॥ २४ मूलकंद निवारीयें, चोवीशमो ए बोल || जाली जेनक्षण करे, ते नर सही निटोल ॥ १५ ॥ २५भूमिरूहां बत्रक कह्यां, वर्षाकालें होय ॥ भूमिफोट सहु को कहे, धोजे व जोय ॥ १६ ॥ धान्य विदल जे अंकु रित, ते विसदा कहेवाय || शाक जाति २६टंक वाधुलो, खातां अवगुण थाय ॥ १७ ॥ २७शुक्रवल्लि १८ पल्यंक तेम, शाक नेद अवधार || कोमल तिम वली ३०वली, अब 5 अस्थि निर्धार ॥१८॥ ३१धालुक ३पिंमा लुक कह्या, कंदनेद तेम जाए || ए वत्रीशे परिहरे, श्रावक तेह सुजाण ||१|| १ सचित्त चित्त मिश्र जाणी यें, तेम ३ पक्क धपक्क ॥ पतुञ्चोपधि नक्षण तथा, न करे मतिपरिपक्क ||२०|| प्रतिचार ए वारतां, ए होय निरति चार ॥ कर्मथकी हवे सांजलो, ए व्रतनो विस्तार ॥ २१ ॥ ॥ दाल बत्रीशमी ॥
कूड़ा कानजी रे, महारी लोवडी तुं लाव ॥ ए देशी ॥ कर्मथकी खर कर्म सघनां, दूर ढंके जाए ॥ तास अतिचार पन्नर, नांखे श्री जिन जाण ॥ १ ॥ कहे जिनशांतिजी रे ॥ नविजन नावथी तुं धार ॥ धरो मन खांते जी रे, कठिन कर्म दूरें मार ॥ ए यांकणी ॥ पन्नर कर्मादान वारो, कर्मनुं यादान ॥ धातमाने एम तारो, नजो श्री भगवान ॥ कहे ०