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श्री शांतिनाथनो रास खंम हो. ३७७ ॥शा इंगाल कर्म वारा ने, वन्न बमो दूर ॥ शकट नाटी स्फोट महेलो, . सुख होवे पूर ॥ क० ॥ ३ ॥ करम पंच बांमियें, पांच वणिज वार ॥ दांतनो व्यापार चूमो, नाख दूरे मार ॥ क० ॥ ४ ॥ रस केश विष केरो, वपिन निखरी बम ॥ पापनो परिहार कीजें, धर्म साथें मांग ॥ क० ॥ -५॥ यंत्रपीलण ने निलंबन, पापकारण जाण ॥ दाव अग्नि दान देतां, होय गुणनी हाणि ॥ क० ॥ ६ ॥ शोपवे जल घाणगुंथी, नीचमा शिरदार ॥ असतीपोपण वारीयें तो, पामी गति सार ॥ कण ॥ ७॥ एह पन्नर पंच जोगें, वीश अतिचार ॥ एहनो व्यासंग महेलो, कहिये वारं वार ॥ क० ॥ ७ ॥ जोग उपरे जावीयें, जितशत्रुनो दृष्टांत ॥ दा खीये नित्यमंमिता, उपनोग ऊपर वात ॥ कल ॥ ए ॥ कहे प्र नु ए जरतमां, वसंतपत्तन नाम ॥ राजवी जितशत्रु रूडो, नामने परि णाम ॥ क० ॥ १० ॥ नाम सुबुद्धि मंत्री साईं, अश्व जोवा काम ॥ चा लीयो जितशत्रु राजा, अश्व खेज्यो ताम ॥ क० ॥ ११॥ वाग खेंचे पवननी परें,दोडीया हय दोय ॥ राजा ने मंत्रीश दोनू,नारखे जंगल सोय ॥ क० ॥ १२ ॥ तीन दिवस वनमांहे, न मव्युं तेहने नीर । केडेथी सवि सैन्य श्राव्यु, पुरमा धाएया वीर ।। कल ॥ १३ ॥ जोजन कीयांना वता, थाकंठ नूरव्ये जोर ॥ माय नहीं उडकार मांहे, एहवो जिम्यो घोर ॥क० ॥ १४ ॥ रातमा थाहार वाहिर, वमनमागे जाय ।। पेटमांहे चूक उठी, धालस विलस थाय ॥०॥१५॥ राय ते परलोकमांहे, गयो तेणी वार ॥ धार्तध्याने ते मरीने, थयो व्यंतर सार ॥॥१६॥ जोगना परिमाण पाखे, एहवी गति होय ॥ गति मति खोइ वेसे,हसे सङ कोय ॥ ० ॥ १७ ॥ सजिलो परिनोग नपरें, कहे श्रीजिनशांति ॥ नित्य मंमिता नारि केरी, वात सुणो खांति ।। क० ॥ १७ ॥ एहिज नगरमाहे हून, यग्निदेव विन ॥ वेदनो ते जाण सूधो, करम करे दिन ॥ कल ॥ १ए । तेहने घरे वे सुनंदा, नामथी वर नारि ॥ कंतने थतिवालही, प्राणनो अाधार ।। क७ ॥ २० ॥ तेह बांगण लोकपूजित, बिन पाम्यो नूरि ॥ अंगनृपण नारीने एणे,कीधां श्रानंदपुर । क० ॥ २१ ॥ अंगथी
ण मात्र थलगां,न उतारे तेह ।। कंतजी तो नित्य वारे, पहेरमा नुं पह ॥ कर ॥ २२ ॥ कोइ पर्व पट्टेरीयें ए, चोर, शहां जोर ॥ कंतने करे