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११६ जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. ॥ १६ ॥ शतवल सुतने राज्य जलावी, ले सहस्रायुध संयम नावी ॥ श्री० ॥ १७ ॥ थ गीतारथ विचरे वसुधा, मुखथी बोले वाणी न मुधा ॥ श्री ॥ १७ ॥ श्रीवजायुध साथें विचरे, संवेगरंगमां हैयहूं पसरे ॥ श्री ॥ १५ ॥ करता विविध तपस्या सारी, प्रतिवोधंता बदु नर नारी ॥ श्री ॥ २० ॥ आव्या नगर पित्प्रागनार ॥ मुनिवर करता दोय विहार ॥ श्री ॥२१॥ चोये खंमें चोत्रीशमी ढालें, राम कहे धन्य जे एम पाले ॥ श्री० ॥ २२ ॥ सर्वगाथा ॥
१०॥ श्लोक तथा गाथा मलीने ॥४॥
॥अथ कलश ॥ ॥ राग धन्याश्री ॥ धन धन ए मुनिवर वड नागी ॥ श्रीवजायुध ने सहस्रायुध, शुद्ध किरिया गुणरागी ॥ध ॥ १ ॥ चोरासी लरख योनि ख मावी, सुमति दशा मति जागी॥ष्कृत पाप बालोई सघलां, चनशरणां करे त्यागी ॥ध ॥ ॥ अगसण पादपोपगम धाराधे, मुनिवर दोय वैरागी॥ अष्टम जव एम योग विलासी,कीर्ति जइ जग वागी॥०॥३॥ काल करी नवमे ग्रैवेयकें, शशिवदुली कर लागी॥ एकत्रीश सागर आयु उपना, वेदु थया सोनागी ॥३०॥॥ सुख विलसे अति सुंदर वांबित, जव नवमे अनुषंगी ॥ इव्य जिनेश्वरके गुण गावो, दरिसण गुणके प्रसंगी ॥ध ॥ ५ ॥ ते प्रचुके गुणराशिकी रचना, रास कीयो में उमंगी ॥ चोयो खंग संपूरण कीनो, सुगजो सदु एकरंगी ॥ध ॥ ६ ॥ मंगलमाला जाकजमाला, सुणतां होवे सुचंगी ॥ श्री सुमतिविजयगुरु चरण प सायें, कीर्ति कमला अनंगी ॥ध० ॥ ७ ॥ सर्वगाथा ॥ १७॥ श्लोक तथा गाथा ॥ ४२ ॥ प्रथम खंग गाथा ॥ ४३७ ॥ द्वितीय खंगाथा ॥ २८ ॥ तृतीयखंक गाथा ॥ ७३४ ॥ चतुर्थखम गाथा ॥ १० ॥ चारे खमनी गाथा ॥३१०६॥ चारे खंमना प्रास्ताविक लोक तया गाथा ॥ ११७ ॥ खंझ चारनी ढाल ॥ ११३ ॥ इति श्रीशांतिनाथप्रबंधे रासबंधे छादशनवनिबंधे थाम्रनिपात्याद्यनेका विमृश्यकारिनृपचरित्रानुविधपुण्यसा राधिकारसंबंधोऽष्टमनवमनववर्णननामा चतुर्थः खंमः संपूर्णः ॥ ४ ॥