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न जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. थाये, चोशनशे ने घडयाल ॥ संख्या नांखी आगममांहे, प्रचुंजी दीन दयाल ॥ज ॥ १३ ॥ तिहां श्रीविजय ने अमित नरेश्वर, बहुपरिवार थावे ॥ पात दिवस महोत्सव अहाही, पूजा विविध रचावे ॥ ॥१४॥ नक्ति करे जिननी नवरंगी, नव नव अंगें पूजी ॥ समकित निर्मल करवा नविने, ए साल करगी न दूजी ॥ ज० ॥ १५ ॥ पाबा फरि याची : मंदिरमां, जिनमंदिर जूहारे ॥ तत्ता थे। थे नाटक करतां, पाप पमलने । वारे ॥ न ॥ १६ ॥ एक दिन मेरुवनें नंदनमां, बाव्या जिन नमवाने । वेदु राजेसर अति अलवेसर, कर्मनी रज दलवाने ॥न॥ १७ ॥ जिणहर । चार जगीश विराजे, कंचपणे उनीश ॥ पचवीश योजन पहोलपणेते,यायत वली पंचास ॥ ज० ॥ १७ ॥ प्रतिमासंख्या एक प्रासादें, एकसो वीश गणि राखी ॥ नक्ति करे आवी तिहां राजा, बदु विद्याधर साखी ॥ जप ॥ १५ ॥ पंचमेरुचन संरख्या करतां, विंव उन्नुशे कहीयें ॥ ए जिन नित्य उतीने नमतां, नवियण शिवसुख लहियें ॥ ज ॥२॥नक्ति करीने नंदन - वनमां, फरता मुनिवर दीना ॥ जुमति विपुलमति इण नामें, जोतां लाग्या मीना ॥ ज० ॥ २१ ॥ हवे कहेशे मुनिवर उपयोगी, अग्यावीशमी ढाल ॥ वीजे खंमें रामविजय कहि, धन्य जस धर्मनो ढाल ॥ ॥२२॥
॥दोहा॥ ॥ अतिशय नाणी मुनि कहे, निसुणो तुमें राजिंद ॥ यायु अथिर जि नवर कयुं, श्यो तेहगुं प्रतिबंध ॥१॥ श्रायु अमूलक नरतगुं, जो धर्मे जो डाय ।। नहिंतर ए नव पूरणा, कोडी काम न थाय ॥२॥ ते माटें तुमने अमो, कहियें ये उपदेश ॥ चेताये तेम चेतजो,यायु रयुं लवलेश ॥ ३ ॥
॥ ढाल उगणत्रीशमी ॥ ॥ निश्डी वैरण दुइ रही ॥ ए देशी ॥ निड्डी मोहनी परिदरो, मत कंघो हो रहेजो सावधान ॥ कुमति रमणीने दृरे तजो, समतानो होनजो संग सुजाण ॥ निं०॥ १ ॥ श्रायु दिवस उबीशनु, रयुं तुमचूं दो निमुष्णो राजिंद ॥ तो अरथी तुम धर्मना, तिण कारण होयमें नरिव्यु नरिंद ॥ निं० ॥॥ यात तुणी गय चिंतवे, हे दास्यो हो एहलें अवतार ॥ धर्म करयो नदि चोंपा, मोहनृपं दो उलिया निरधार ॥ नि॥३॥ मम रह्याथमें मोहमां,