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- २५६ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. दिशहूंती ताम, ती कादंबिनी ॥ हो ॥ ३० ॥ करे कडाको जोर, जबके दामिनी ॥ हो० ॥ ॥ २ ॥ वरसे वरसलो विंड, धरोपरि मोटका ॥ हो ॥ धण॥ क्षणमाहे रहि जाय, रमाडे गोटका ॥ होण॥ २० ॥ वली धावे दे दोट; लपेटे जूमिनें ॥ हो ॥ ल ॥ कां रमे ग्रीपम साथ, विसायो तें मुनें ॥ दो० ॥ वि० ॥ ३ ॥ वायु शीतल वाय, जलदधा रा घणी ॥ हो ॥ ज० ॥ थर थर धूजे अंग, विलूटे कंपनी ॥ हो ॥ वि० ॥ तव देवराज कुमार, विचारी वडतले ॥ हो ॥ वि० ॥ आवी कनो उढण, उढी निश्चलें ॥ दो ॥ ३० ॥ ४ ॥ वड उपरथी वाक्य, सुण्यं तव तिहांकणे ॥ दो० ॥ सु० ॥ मनमांहे चिंते एम, इहां ए कुण जणे ॥ दो० ॥ ३० ॥ निसुणुं मामी कान, जोर शुं उच्चरे ॥ हो ॥ जो ॥ सुणे पैशाची वाचे, पिशाच वातो करे ॥ हो ॥ पि ॥ ५ ॥ लांबी करीने वांह, गाहा एक कहे ॥ हो । गा ॥ बीजो मांझी कान, के साची सदहे ॥ हो ॥के०॥ त्रीजो चिंते ताम रह्यो हेग्ल थकी हो० ॥ र ॥ जोयुं अचरिज एह, कहेशे शी वकी। हो॥क ॥ ६ ॥ अत्र चरित्रोक्तं गायाध्यं ॥ फो फो जाणसि किंची, सो पनादिनो कदेहि मह किं तं ॥ जंप इमोवि अऊं, लहीए सो नरिंदोति ॥ ४ ॥ वीएण त पुझो, केण निमित्तेण की वेलाए ॥ सो जंप सप्पा, पढमे पहरं मिलती ए॥ ५ ॥ पूर्वढाल ॥ जाणे पिशाची वाणीनो, अर्थ ते आपथी । हो ॥ अ० ॥ हा हा माहारो स्वामि, मरशे सापथी । हो ॥म ॥ पहेला प्रहर मजार,दैवें गुं कीधळु ॥ हो ॥ दे॥ अथवा जलु लघु एह, में कारिज सी धनुं ॥ हो ॥ में ॥ ७ ॥ करीश हुँ एह उपाय, साहिव उगार' हो। सा ॥ यत्न करीने सर्पy, विघ्न निवारयुं ॥ हो० ॥ विण ॥ यागुं नहिं गुणचोर के, ढोर परें हवे ॥ हो ॥ढो॥ स्वामी जनक समान, सङ कवि श्म स्तवे ॥ हो ॥ स ॥ ७ ॥ यतः ॥ अन्नदः प्राएदश्चव, स्थानदोनय रक्कः ॥ झानदोजनकश्चैव, सप्तैते पितरः स्मृताः ।। ६ ॥ पूर्वढाल । एम चिंतवतो चित्त, आव्यो नृप यंतिकें ॥ हो ॥ या० ॥ वर्पा टाढ उकंट, चढ्यो शिर चिंतके ॥ हो ॥ च॥ सांऊ समयमां सनाने, विसर्जी राज वी होण्॥
विवादल घोर घटा घन, रहियो गाजवी ॥ हो० ॥ र ॥ ॥ए ॥ श्रावी निज यावास, नरेश्वर पोढीयो ॥ हो० ॥ न ॥ लांबो सो