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श्री शांतिनाथनो रास खंम चोयो. २५५ चिंता मत करजो चित्तमांहे तुमें ॥ रहो अम पासें धानंद हो ॥रा०॥ से वा थाशे ते करगुं अमें ॥ २१ ॥ तुम जेवा गुणवंत हो ॥ कुमरजी॥ श्राव्या आंवे ज्युं वायें कोकिला ॥ शरण ए संतने संत हो ॥ कुछ ॥ चं चल कमला स्थिर न रहे इसा ॥ २२ ॥ मत था दिलगीर हो ॥ कु०॥ वीर विराजो सुंदर मालीये ॥ अशन वसन वर चीर हो ॥ कु॥ यो तुमें सुखमांहे दीहा गालीयें ॥२३॥ बहुत करी सुपसाय हो । कु० ॥ सेवक थाप्या चोकी अंगनी ॥ वद् सन्मान्या राय हो । कुछ ॥ सुजस वाध्यो वेला उतरंगनी ॥४॥ चोथे खंमें रसाल हो ॥ नवि प्राणी ॥ ढाल जपीए रंगें पांचमी॥राम कहे उजमाल हो ॥ ॥धर्म करीजें परखी उद्यमी ॥२५॥
॥दोहा सोरती ॥ ॥ रात तणा चिटुं याम, चिढुं बंधव चोकी करे ॥ अनुक्रमें अनुक्रमें काम, राय नलाव्युं बादरें ॥ १ ॥ आप आपणे याम, तिलनर को कंधे नहिं ॥ दोहिली सेवा धाम, देव म देजे तुं सही ॥ ५ ॥ यतः ॥ थाहा रयति न स्वस्थो, विनिशे न प्रबुध्यते ॥ वक्ति न स्वेच्या किंचित्, सेवकः किं नु जीवति ॥ १ ॥ कष्टं जो सेवकानां तु, परबंदानुवर्तिनाम् ॥ स्वयं विक्रीतदेहस्य, सेवकस्य कुतः सुखम् ॥ ॥ दोहा ॥ जोडक सोनया दिये, तोहि न कर सेवाकर्म । नरने नारी एम जणे, झुं जीवितनुं शर्म ॥३॥ यतः॥ मौनान्मूकः प्रवचनपटुर्वातुलोजल्पकोवा, दांत्या नीरू यदि न सहते प्रायशोनानिजातः ॥ धृष्टः पार्वे वसति च यदा दूरतश्चाप्रग ब्लः. सेवाधर्मः परमगहनोयोगिनामप्यगम्यः ॥ ३॥ सोरती दोहो ॥ मू काव्यु निज राज, वेठ वलगाडी पापीयें ।। उष्ट देवयी घाज, राखें तिम रहीये सही ॥ ४ ॥
॥ ढाल नही॥ ॥ थारा महोला ऊपर मेह, मबूके वीजली ॥ हो राज ॥०॥ ए देशी ॥ लही नृपनो आदेश, के कोक कामने ॥ हो लाल के को॥ गयो एक दिन देवराज, नजीकने गामनें ॥हो॥ न० ॥ करि कारज मध्यान्ह, सम . य पाटो वयो । हो० ॥स०॥ विचमाहे वढीयो जोर, पवन धना मल्यो ... दो० ॥ ५० ॥१॥चाये वालीया कमे, धुल थोरण चढी । हो० ॥ ५० ॥ कंकर तप तिम पत्र, दोडी जाय ऊपही ॥ हो० ॥ दो ॥ घिडं