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श्री शांतिनायनो रास खंग चोयो.
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डो ताणी, उपर पट उढीयो || हो० ॥ ० ॥ पासें रही पटराणी, वडी ते सेजमां ||हो ॥वण जीडी बिहु नृजबंध, ते सुतां हेजमां ॥ हो |ते | १० ॥ चाव्यो पहेले पहोर, चोकीने कारणें ॥ हो ||चो० ॥ जोवे ते देव राज, रह्यो गुह्य वारणें ॥ होणार ॥ अथ ऊपरें ते वास, भुवन नीहालतो ||हो॥०॥ वारी जाली गोंख, विवर सवि चालतो ॥ हो॥वि॥ ११ ॥ खग यही निजहाय, रह्यो एक मने ||हो ॥ र० ॥ चंशेदयने विवरें, ध हि लंबित तने ॥ हो ॥ ० ॥ देखी ग्रहियुं एक, करें मुख साहसी ॥ हो० क० ॥ वीजे करें दोय खंग, कस्या ग्रहीनें यति ॥ हो० ॥ क० ॥ १३ ॥ गोपविया एक वोर, जइ ते खंमने || हो ॥ ज० ॥ मन चिंते ययुं कारन, हणीयो लंग्ने हो | ह० ॥ निश विवसन देवी, नरःस्थल ऊपरें ॥ हो० ॥ ॥ ० ॥ देखी पढिया विंड, रुधिरना दुःख धरे ॥ हो० ॥ रु० ॥ १३ ॥ रखे विपसंक्रम होय, इस्युं मन चिंतवे ॥ हो० ||50|| लूंबे स्वामीनक्त, कलानें केलवे ॥ हो० ॥ क० ॥ निशदययी ताम, गुनना उदद्यथी ॥ हो० ॥
० ॥ कुच ऊपर कर देखी, शंक्यो नृप हृदययी ॥ हो० ॥ ० ॥ १४ ॥ क्रोध घरी मन चिंते, मारुं एहने ॥ हो० ॥ मा० ॥ शन वसन सवि पूरुं, नितप्रत्यें जेहनें ॥ हो |नि॥ कीधुं एणे हराम, सवि ते माहरूं ॥ हो० ॥ स० ॥ कीधुं कर्म कठोर, थड़ने वाहरु | हो० ॥ य० ॥ १५ ॥ हुं एहने विश्वास रहुं रयणी समे ॥ हो० ॥ र० ॥ करे ए एहवं काम, हवे मुख नवि गमे ॥ हो० ॥ ० ॥ प्रीति तयुं जिहां गम, तिहां त्रय टालीयें ॥ हो० ॥ ति० ॥ अर्थसंबंध विवाद, रमणी न निहालीयें || हो० ॥ २७ ॥ १६॥ यतः॥ यदीदिपुलां प्रीतिं त्रीणि तत्र निवारयेत् || विवादं चार्थ संबंध, परोचे दारदर्शनम् ॥ ७॥ पूर्वदा ॥ ब्रह्महत्या ने प्रजास, (प्रजासशब्देन साधारण इव्यं) दरि धन देवकुं ॥ हो ० ॥ ० ॥ गुरुपत्नी वली तेम, ए पातकका रकु ॥ हो । एनवि पामे ते स्वर्ग, नरक व्यधिकारिया ॥ हो ॥न ॥ वो जालो कृतगुण, जेणें विसारिया ॥ हो० ॥ जे० ॥ १ ॥ बली नृप चिंते एह, जोरावर ने बाएं || हो० ॥ जो ॥ कोण जाणे हणे एह, के हुं एहने हुएं || हो | के० ॥ माटें कोई उपाय करीने मारं ॥ हो० ॥ क० || बेरीने विपवेल, णी नवधारणं ॥ हो। न० ॥ १८ ॥ जोजो गुणनो दोप, यने नीप न्यो ||होणाय ॥ जननालेरकपूर, श्रकी विष कपन्यो । दो० ॥ ० ॥
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