________________
२५० जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. सूतो फरीने राय, के निज्ञामिप करी ॥ दो॥॥ पहेलो पहोर व्यतीत, पूरी था चाकरी ॥ हो ॥ पू० ॥१॥ व्यो तव वत्सराज, कहे वंधव तुमें ॥ हो ॥ वं ॥ राज पधारो गेह, हवे रहेगुं अमें ॥हो ॥ ह ॥ निजमंदिरें देवराज, पहोंच्यो नई तिहां हो॥०॥ नृप पूजे पहोरायत, कोण अछे इहां होको॥२०॥ कहे स्वामी वत्सराज, हुँ सेवक राजनो ॥ हो ॥ ढुं० ॥ कनो सेवामांहे, के पूरो साजनो हो॥के॥ बही चोथे ढाल, सीराडे ए चढी॥ हो ॥ स० ॥ राम कहे क्रोधांध, न राखे प्रीतडी॥ हो ॥न॥१॥ सर्व गाथा ॥१६॥ श्लोक तथा गाथा ॥॥
॥ दोहा सोरती ॥ ॥ कहे नरवर एक काम, वत्स करीश तुं माहीं ॥ कहे शिर जोरें वा मि, वचन न लोपुं तुम्ह तणां ॥१॥ द्यो आदेश सुजाण, शी शंका मुफ थी करो ॥ प्रलु तुम वचन प्रमाण, शेप परें शिरें धरूं ॥ २ ॥ प्रेपण नृत्य परीक्ष, व्यसनें बंधव परखीयें ॥ आपत्तिकाल सरीख, विनवस्ये वलि नारजा ॥ ३ ॥ कहे राजा जो एम, तुम मनमां आवे अ ॥ कर . कारज तजी प्रेम, हण बंधव देवराजने ॥ ४ ॥
॥ ढाल सातमी ॥ ॥ नदी यमुनाके तीर, उमे दोय पंखीयां के ॥ उमे० ॥ ए देशी ॥ तहत्ति करी नृप आण, सुजाण ते नीलस्यो के ॥ सु०॥ मंदिरथी वत्स राज, हृदयथी थरहस्यो के ॥ 8 ॥ चिंते कोप्यो जोर, राजन देवराजनें के ॥राण ॥ विरुन करे निर्धार, ए वयणे आजने के ॥ ए० ॥ १ ॥ तनु दारा धन शेही, कपरें एहवो के ॥ ॥ कोप होय जगमांहे, ए दीसे तेहवो के ॥ ए ॥ पए मुफ बंधवमांहे, न को अवगुण थवे के ॥ न ॥ जे उत्तम होय तास, अकारिज नवि रुचे के ॥ध ॥ २ ॥ सऊन जन अपवाद, थकी रहे वीहता के ॥ थ० ॥ जेह जितेंश्यि तेह, अकाल न हिता के ॥ अ॥ मरण करे उकारें, न चाले उतपथें के ॥ न० ॥ लजावंत सुशील, सुलदाण संकये के ॥ सु० ॥ ३ ॥ यतः ॥ मनसि वचसि काये पुण्यपीयूपपूर्णा, स्त्रिनुवनमुपकारश्रेणिनिःप्रीयंतः।। परगुणपरमागून पर्वतीकृत्य नित्यं, निजहदि विकसंतः संति संतः कियंतः ॥ १ ॥ विपदि धेर्यमयान्युदये क्षमा, सदसि वाकपटुता युधि विक्रमः ॥