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श्री शांतिनायनो रास खंमत्रीजो. ११ ते ते पूरे कंत ॥ १ ॥ गुन वेला गुन दिन घडी, गुन मुहर्त संयोग ॥ रत्न मंजरीये सुत जण्यो, सुंदर तन नीरोग ॥॥ राय करे उत्सव घणो,खरचे
व्य अपार ॥ धवलमंगल गावे जलां, वेठी सोहव नार ॥ ३ ॥ पंच धाव पाली जतो, नाम कमलपत्राद ॥ शैशव वय लंघी करी, पाम्यो यौवन दद ॥ ४ ॥ राज्यनार धोरी थयो, सघनी बातें सकळ ॥ हवे राजा मन चिंतवे, लढुं संयम तजि रत ॥ ५ ॥
॥ ढाल उंगणीशमी। ॥ थारे माथे पचरंगी पाघ, सोनारो बोगलो॥मारु जी ॥ ए देशी॥ दवे एक दिन तेह मुनीश्वर,याव्या सांजली ।। राजाजी ॥ सोपी पुत्रने राज्यनो नार, चल्यो वनमां रुली ॥ रा० ॥ ग्रहे गुरुजीने हाथे दीद, प्रिया साथें वली ॥ रा० ॥ लीयो गुदमाहाव्रतनार, थया धतुली वली ॥ रा० ॥ ॥ १ ॥ तेने दृढ करवा काज, कहे श्रुत केवली ॥ रा ॥ तुमें चालजो सूधे पंथ, मूकी मद आवली ॥ राम ॥ नव अंबुधि तारण एह, प्रव्रज्या ठे जली रा॥ तेमाटें मूकी राग, ते पालजो साचली ॥राण ॥ २ ॥ लेइ दीदा विषयने वांडे, जे मुनि कायरा ॥ वारुजी ॥ नवि कहीये ते नव जलना, संयम वाहरा ॥ तारु जी ॥ ते विपयें नेह न करे, जी हेजाहरा ॥ वा० ॥ ते मुनि परमार्थ सुखना, दरिया माहरा ॥ वा ॥३॥ जिनरक्षित जिनपालनो, शहां नावजो ॥ मुनिवरजी ॥ संबंध अनोपम उपनय, मनमां लावजो ॥ मुखकर जी ॥ तव कहे राजर्पि मनमां, हर खी ते कहो ॥ सशुरुजी ॥ नावी ते वात कढुं, सघली तुमें सहहो ॥ मु० ॥ ४ ॥ चंपानयरीमा माकंदी, नामें माहाधनी ॥१॥ शनामें तस नारी, नली सुगुणी बनी ॥ मु० ॥ जिनपालित ने जिनरहित, सुत अधि काचनी ॥ सु०॥ करे वहाणनो रोजगार, वरीलही घणी ।। मु० ॥ ५॥ तेवारे विचार मनोरथ, वाहनो करे ।। मु० ॥ घणुं पारे तेढ्ने पितर, कत्यु चित्त नवि धरे ।। मु० ॥ चहिया कग्विाणुं लेश, जोई वाहाण गिरे ॥ मु० ॥ नरदरिये नांग्युं वाहाण. फलकने श्राशरे ॥ मु० ॥ ६ ॥ विद्धं दिवमें रचणनो छाप, लही ते नीसग्या ॥ मु० ॥ जल पीधुं फल ना लियर, नवीने ते गया | मु० ॥ एहवे ते छीपनी देवी, देवीने यरन खा ॥ मु० ॥ कहे मुज साथै नुमें सेवो, विषयसुख का मरया ॥ मु० ॥