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जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो.
दवीधरा पांच लाख ॥ सा० ॥ साठ सहस दरवारमां ॥ ल० ॥ ० ॥ पंति पूरे साख ॥ सा० ॥ ६ ॥ साठ सहस बिरुदावली ॥ ज० ॥०॥' प्रतिदिन वोले जाट ॥ सा० ॥ त्रण लाख मंत्रीश्वर कह्या ॥ ल० ॥ ल० ॥ अंश नहिं उच्चाट || सा० ॥ ७ ॥ बत्रिश सहस नाटक जलां ॥ ल० ॥ ल० ॥ नव नव लील विलास ॥ सा० ॥ वीश सहस यागर तपो ॥ ज० ॥ ज० ॥ चाल्यो यावे धनराशि ॥ सा० ॥ ८ ॥ अक्षय खजीनों जेहनो || ल० ॥ ० ॥ किमही न छूटे सोइ ॥ सा० ॥ प्रमुदित सवि परजा जइ ॥ ल० ॥ ल० ॥ शांतिप्रमुख जोइ ॥ सा० ॥ ए ॥ चोसत सहस करे नवां ॥ ० ॥ ० ॥ नित्यप्रत्यें रूप दयाल ॥ सा० ॥ वर तरुणी के विलासमां ॥ ल० ॥ ज० ॥ जातो न जाणे काल ॥ सा० ॥ ॥ १० ॥ विश्वसेन कुल दिनमणि ॥ ल० ॥ ज० ॥ अचिरामात महार ॥ सा० ॥ कंचनवर्ण तनु जेहनुं ॥ ल० ॥ ० ॥ निरखत हर्ष पार ॥ सा० ॥ ११ ॥ सात ईति विरमी सही ॥ ल० ॥ ० ॥ सहु सुखीयो संसार ॥ सा० ॥ शांति प्रभुके राजमां ॥ ज० ॥ ल० ॥ वरत्यो जय जय कार ॥ सा० ॥ १२ ॥ वरस सहस पचवीश थयां ॥ ज० ॥ ल० ॥ च कीपद पालंत ॥ सा० ॥ अतिशय ज्ञानें हो यापणो ॥ ज० ॥ ल० ॥ नंव देखे जगवंत ॥ सा० ॥ १३ ॥ निर्मोही थश्ने रह्या ॥ ज० ॥ ज० ॥ नोग उपर अरिहंत ॥ सा० ॥ नव लोकांतिक देवनां ॥ ल० ॥ ल० ॥ चलियां प्रासन तंत ॥ सा० ॥ १४ ॥ यावे तिहां उतावला ॥ ज० ॥ ल० जिहां प्रभु शांति जिद ॥ सा० ॥ वृक बृज जगवंत जी ॥ ज० ॥ परिहर मोहनो फंद ॥ सा० ॥ १५ ॥ स्थापो तीरथ त्रिभुवनपति ॥ ल० ॥ ० ॥ लोक सदू हितकार ॥ सा० ॥ चौदराजके चोकमें ॥ ल० ॥ ० ॥ चैर न तारणहार ॥ सा० ॥ १६ ॥ एम सुर विनवियो विनु || ल० ॥ ज० ॥ यापे वरसीदान ॥ सा० ॥ करण कीध वसुंधरा ॥ ० ॥ ल० ॥ करे सुर नर गुण गान ॥ सा०॥ १७ ॥ चक्रायुध अंगज नणी ॥ ल० ॥ ज० ॥ स्थापे राज्य दयाल ॥ सा० ॥ प्राप यया अलवे श्वरु ॥ ० ॥ ० ॥ दीक्षाने उजमाल ॥ सा० ॥ १८ ॥ यासन चलियां इंइनां ॥ ल० ॥ ल० || जाएयुं प्रवधिज्ञान ॥ सा० ॥ संयमसिरि वरचा जयी ॥ ल० ॥लणा यया उत्सुक भगवान ॥ सा० ॥ १७ ॥ चोरात सुर
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