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श्री शांतिनाथनो रास खंम हो. तेणें गम, वारुणीदिश प्रनु चालिया ॥ साधण देव प्रनास, दलनारें नग हालिया ॥ १० ॥ तेह नम्यो ततकात, याची जगतगुरु पाउले ॥ उत्तर पंथ निहालि, चाव्यु हो चक्र उमाहले ॥ २१ ॥ याव्या नदीतट सिंधु, जवसिंधु तारक विशु जी, सिंधुदेवी ततकाल, भावी कहे जय जय प्र जुजी ।। २२ ।। स्नाननु पीठ सुचंग, कलश कनकमयरूपने ॥ स्नानसा मग्री हो जेह, नेट करे जगनूपने ॥ २३ ॥ कहे स्वामी कर जोडि, उलग फरी हो ताहरी ॥ करुणानजरें महाराज, नाग्यदशा जागी माहरी ॥ २४ ॥ मुफ लायक खिजमत, प्रनु फरमाविय हित धरी॥लही यागा निजधाम, सिंधु गई हर्षे नरी ॥ २५ ॥ तेडी सेनानी ताम, दुकम करे चक्री इस्यो । सिंधुनो पश्चिम खम, साधि श्रावो सुणि उन्नस्यो । २६ ॥ चर्मरन धरि मेन, सिंधु तरी परतट गयो । खलनव्या तिहांना रे नृप, तस सहामो कोइ नवि थयो ॥ २७ ॥ प्रावि नम्या सद्ध पाय, साथ सेइने हो धाविया ।। नेट दुई जिनराय, चरण नमे नृप ना विया ॥ २७ ॥ सबढुं पुण्यनुं जोर, सहसगमे नृप सेवता ॥ श्रावि नमे कर जोडिकोडि गमे जस देवता ॥३॥ हे खमें हो ढाल,नही कही रलि बामणी ॥ सुपो नवि उजमाल,शांति प्रनु कीर्ति घण॥३०॥१७॥१॥
॥दोहा॥ ॥ चक्र चल्युं ननमंझलें, पूढे गांति नरिंद ॥ अनुक्रमें जातां पामि यो, शुचि वैताद्वय गिरिंद ॥ १ ॥ श्राची नम्यो प्रनुपुस्य थी, वैताढवाडि कुमार || वशयनी थइ एम कहे. जय करुणानंमार ॥ २ ॥ गुफा तमि स्वानं तदा, स्वयमुद्घाटी हार ॥ वैताढयपाल सुर चरण नमी, कहे जय जगदावार ॥ ३ ॥
॥ दाल सातमी॥ ॥ मन मोदना लाल ॥ए देगी। श्रमचारी गजराजकी। मनमोहना साल ॥ीनी गांनि दयाल दो। जन रंजनां सालान फरे शिर करें ॥ म० ॥ तीन नगन रखनाल दो ॥ ज० ॥ ॥ मणि रया गजराज के । म ॥ नम्यान धणं मारो ॥ ज०॥ शर जोयण लगे तेस श्री रे ॥मः ॥दर करें धकार हो । ज० ॥ ३ ॥ कांगिणी हाय मारे । म ॥ यो मंगस तमदार हो ॥10॥ गणपचास प्रालि