________________
३७६ जैनकया रत्नकोष नाग आठमो. खे रे ॥म ॥ सेन कानें चक्रधार हो ॥ ज० ॥ ३ ॥ वचें नन्मना नि । नगा रे । म ॥ निर्मना तेम जाण हो ॥ज॥ वार्षिकी पाज करे तिहां । रे ॥म ॥ पामी प्रजुनी आण हो ॥ ॥ ४ ॥ सैन्य सदु तिहां उतरे । रे ॥ म ॥ जुन जुन पुण्य प्राग्नार हो ॥ ज ॥ तमिस्रगुहाथी नीसस्या , रे । म ॥ बाहिर जगदाधार हो ॥ ज ॥ ५ ॥ तत्रापातचिलातका रे .. ॥ म ॥ म्ले तणा मलि नूप हो ॥ ज ॥ चिंते ए कुए आवियो रे ॥ म० ॥ वैरी सैन्य विरूप हो ॥ ज०॥ ६ ॥ युछ तेहो साथै वाफियु रे ॥ जीडे सुनटनी कोड ॥जण ॥ देवी म्लेबने आकरा रे ॥ म ॥ सैन्य रघु मचकोड हो ॥ जण॥ ॥ सेनानी सुणी आवियो रे ॥ म ॥ थ तुरग . अस्वार हो ॥ ज० ॥ दमरत्न ग्रही हाथमां रे ॥ म ॥ धायो यम था कार हो ॥ ज० ॥ ७ ॥ जट कोटी तव ऊबले रे ॥ म० ॥ स्वामिवलें बलवान हो ॥ ज ॥ नागि पडी म्लेबां तणी रे ॥ म ॥ नाता ते गत शान हो ॥जण॥ ए॥ केश पड्या के आखड्या रे ॥म०॥ केश दुवा संहार - हो ॥ ज० ॥ सहामुं को जाले नहिं रे ॥ म० ॥ दुइ म्लेबांनी हार हो ॥ ज० ॥ १० ॥ नासी सिंधुतटें गया रे ॥ म ॥ तजि पाहार स्वयमेव हो ॥ ज ॥ वारिद नामें कामने रे ॥ म०॥ तेह आराधे देव हो । ज० ॥ ११ ॥ तुष्ट थइ कहे म्लेबने रे ॥ म ॥ अमें कुणमात्र अनाथ हो ॥ ज० ॥ पशुं अम चाले नहिं रे ॥ म ॥ ए त्रिदु जगको नाथ हो ॥ ज० ॥ १२ ॥ म्लेन कीयो यह घणो रे ॥ म० ॥ वरसावे जलधार हो ॥ ज० ॥ किमही तेह न उसरे रे ॥ म ॥ वरसे मूलधार हो । ज० ॥ १३ ॥ जिनचकीसेना वहे रे । म ॥ वाध्युं पाणीपूर हो ॥ जम् ॥ कहे प्रधान सुण साहिवा रे ॥मा राख राख वडनूर हो ॥ ज० ॥ १४॥ चर्मरत्न प्रनुजी धस्युं रे ॥म॥ वार जोयण विस्तार दो ॥ज०॥ जल वूमती नदरी रे ॥म ॥ सेना जगदाधार हो ॥ ज० ॥ १५ ॥ दंमरत्न उपरें ठव्युं रे ॥ म० ॥ त्ररत्न सुखकार हो ॥ ज ॥ कोश घडतालीश उपरें रे ॥म० ॥ न तो विस्तार हो ॥ ज० ॥ ॥ १६ ॥ करे प्रकाश मणि रयणगुंरे ॥म० ॥ जाणे अग्यो सूर हो ज० ॥ कण नीपावे कर्पणी रे ॥म॥ रख दारिश करे दूर हो ॥ ज० ॥ १७ ॥ एम निजसेना उरी रे ॥मा जल नवि खेंचे धार हो ॥ ज० ॥
WPAL