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श्री शांतिनायनो रास खंग बीजो. एकविरामी ढालें. दारव्यो नृप मनमाय ॥ वीजे खंमें रामविजय कहे, जुवे सिमि न पाय |गाणार या सर्व गाथा ॥५७४ा श्लोक तथा गाधा १७
॥दोहा॥ 1 मातंगगृहयी मगाविया, संघाटक नृप चार ॥ दिया कराव्या नीतरें, धन दनाम सुविचार ॥१॥ रोपें चढयो राजा कहे, सेवकने तेगि वार ।। वचनृमें से जाने, करो हुने गर ॥ ५॥ पावंत कुमर वढो. लागी नृपने पाय॥ नोटाव्या ते जीवता, उत्तम नीच न बाय ॥ ३ ॥ यतं ॥ न भवति जयति च न वरं, नवति चिरं चेत्फलं विनंवदति ॥ कोपः सत्पुरुषाणां, तुल्यः स्नेहेन नीचानाम् ॥ १॥अंब न हो लीवडे.लीवे न दोय अंध ॥ सङ्गन ते पुर्जन नोहे, जो धरती होय श्रान ॥ ॥ सडान ऐसा कीजिये, जेसा पाणी कोश ॥ पगडूंती जो टेलीये, तोही नाणे रोप ॥ ५ ॥ सजान जाई मनाविये, जो रुसे तो बार ।। सहननो एक क्षण ननो, सरवनो जमवार ॥ ८॥ जो रुवे गुणवंतने. तोहे जे डाव मोट ॥ एक न देजे देव तुं, पुर्जन नायें गोठ ॥ ७ ॥ संगति कीजें सहना,जदयी लांजे नीड । उनी संगति नीचकी, नवी कपाई पीड ॥ बाद याद तडको को, महोटो ए गुणवंत ॥ अवगुण ऊपर गुण करे, तहज कहिये संत ॥ ५ ॥
दाल बावीगमी॥ ॥ देशी मृगानयणीना गीतनी॥ए वणिकने कातों कीयो गज, धन माल कजातीने लीधो राज ॥ नवि गुण्य तणां फन जोजो ॥ माल सॉप्यों धनवने दावे गल, मनायां ते नरनाथे गज । न ! ॥ पूर्व बघणं मान गन, गती वाध्युं बद्ध मन्मान गज ॥२०॥ जग कन्यानो कदेवाये गज, गृण के पूजा पाये राज ना कहे गजन यान प्रकामो गन. मांगो मुण्य लोदामो राज ।। न ॥ कहे कुमर सणो नमीमा गज, नांद मस परित जमीशन न० ॥ ॥ नुम नयग्नो वानी गज, रन्न पसरनी लन सुनितानी गज ॥ ॥ नामें ईधनद मा गज. बढ़ मान पिनानां चार गज Re | H |दिन पर गाया नी गन, मालकीनार में जाकी राजनामजताने दोसी गागजातो
ननमा ज नची पापा राज, बीमा पागज न० ॥ ना पाटी वी गन, मोदन ही न