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जेनकथा रत्नकोप नाग आग्मो. दृक्यो राज ॥ ज० ॥ ६॥ तिहां कंचन रयण निपायुं राज, तेणें शेउनु चित्त लालचायुं राज ॥ ज० ॥ नाख्यो मुने कूप मकारी राज, परण्यो तिहां राजकुमारी राज ॥ ज० ॥ ७ ॥ नाखीने ए वलियो राज, देवदत्त आवी ने मलियो राज ॥०॥ कूपमांहेथी मुझने काढयो राज, नरदरिये वरत एवं वाढयो राज ॥ न ॥ ७ ॥ पडतां महोटे मत्स्य गलियो राज, श्हां याव्यो मनोरथ फलियो राज॥ना तिलकसुंदरी महारी राज, देवदत्ते राखी प्यारी राज ॥ न ॥ ए ॥ नाग्ययोगें जो इहां आवे राज, तो माहरो जोरो फावे राज ॥ ज० ॥ सुण स्वामी गुणमणिखाणी राज, में जांखी कर्म कहाणी राज ॥ ज० ॥ १० ॥ सुणी राजा विस्मय पाम्यो राज, सव जो तुज पुण्य सहायो राज ॥ न ॥ रहे नृपगेहें वडजागी राज, हवे पुण्यदशा शुन जागी राज ॥ ज० ॥ ११ ॥ तिहां देवदत्त सार्थवाहो राज ॥ मलवा आव्यो सोत्साहो राज ॥ ज० ॥ मल्यो नृपने रंगे धावी राज ॥ केम टाल्युं टले जे जावी राज ॥ न ॥ १२ ॥ उलखियो धनद कुमार राज, रह्यो ठानो गुप्ताकारें राज ॥ न ॥ नृप पूढे कुशल सवाया राज, कुण देशथी शेवजी याया राज ॥ ज० ॥ १३ ॥ वली साय ए कुण नारी राज, किम वेंढारो गुण सारी राज ॥ ज० ॥ कहे होत : कटाहयी आव्यो राज, व्यापारें वन धन पायो राज ॥ ॥ १४ ।। वलतां जलनिधिमां पाई राज, एकाकी ए चित्त सुहाई राज ॥ ज० ॥ करि वस्त्राचरण विनूपा राज, लाव्यो शहां निर्दोपा राज ॥ ज० ॥ १५ ॥ हवे तुम अनुमति प्राज राज, होशे मुफ घरणी माहाराज राज ॥ ज० ॥ लेतुम आपा कृत्य कीजें राज, तो सदुमां सुयश वरीजें राज ॥ ज० ॥ १६ ॥ निसुणी नृप चित्त विचारे राज, शी बात कही धूतारे राज ॥न ॥ कहे नृप जो तुमनें ए चाहे राज ॥ तो करो कारज उत्साह राज ॥ न ॥ १७ ॥ कहे तिलकसुंदरी स्वामी राज, नृपतिने महोटी खामी राज ॥ ॥ पररमपी परने हाथे राज, किम दीजे धनायना नायें राज ॥ न ॥ १७ ॥ ए करणी जगमां घुमी राज, परनारी नरकनी कूमी राज ॥ ॥ केम पागल रहीने अपायो राज, गुंठे
तुम नरकें जावो राज ॥ ज०॥ १९ ॥ करे पाप करावे जेह राज, - अनुमोदे त्रीजो तेह राज ॥ न० ॥ ए त्रणे कह्या गुणचोर राज,