________________
३ए४
जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. दिशि वात, कमी गयो मशकनो त्रात, सूपी याव्यां तस गात ॥ जिल ॥ १७ ॥ उपसर्ग टल्यो थइ शाता, पारे सामायिक गुणवंता, एम काम पंडे रह्यो तंत ॥ जिप ॥ १७॥ अनुक्रमें देशांतरें जाय, बदु लालीनो सान उपाय, घर आव्यो सिंह कमाय ॥ जि० ॥२॥ साते देवें वित्तने ।' वावे, लखमी सुरुतारथ थावे, देशमा वदुलो यश पावे ॥ जि० ॥ २१॥ . गृहिधर्म रूडी परें पाली, अंते अगसण संजाली, गयो सुरलोकें रुचि शाली ॥ जि ॥ २२ ॥ लहेशे एक नर अवतार, आदरशे संयमनार,, । होशे सिक्ष्विधू जरतार ॥ जि ॥२३॥ एम ए व्रत पाल्युं सार,आपे नव जलनो पार,जब क्षण तव ए गुण धार ॥ जि० ॥ २४ ॥ बधाडत्रीशमी । ढाल,कहे रामविजय उजमात,व्रतवंतने नमो त्रण काल ॥ जि ॥ २५ ॥ : इति नवमसामायिकत्रते सिंहश्रावक कथानकम् ॥ ए ॥ १५ ॥ ७ ॥ ॥अथ दशम देशावका शिकत्रतसंबंधः ॥
॥दोहा॥ ॥ वीजुं शिकावत हवे, व्रत दशमुं तेम जाण ॥ शांति प्रनुजी एम। कहे, नवियणने हित प्राण ॥ १ ॥ जावजीव दिशिविरतिद्वं, जे व्रत बहुं सार ॥ तेमांहे प्रतिदिन धारवो, संदेपें सुविचार ॥ ५ ॥ सर्व व्रत संदे ।' पथी,अथवा ए व्रत जाण ॥ मुदुत दिवस वली पदता,ए व्रतनुं परिमाण ॥ ३ ॥ यमुक्तं ॥ एग मुदत्तं दिवसं, राई पंचाहमेव परके वा ॥ वयमिह .. धारेह दढं, जावई यं उनहे कालं ॥ १ ॥ पूर्वदोहा ॥ एवं सघना व्रत नियमनो, प्रतिदिन करे संदेप ॥ चनद नियम संजारतां, संपतां निलेप ॥ ४ ॥ अतएव ॥ सञ्चित्त व विगई, वाहण तंबोल वह कुसु मेसु ॥ वाराह सयरा विजेवण, वंज दिसि न्हाण नसु ॥ ३ ॥ पूर्वढाल ॥ पंच अतिचार एदना, प्रथमानयन प्रयोग ॥ प्रेप्यप्रयोग बीजो वली, शब्दानुपाती तिम योग ॥ ५ ॥ रूपानुपाती चोयो कह्यो, पंचम पुगत देप ॥ दशमा व्रतमाहे कहे, श्री जिनवर गतलेप ॥ ६ ॥ गंगदत्त श्रा वकपरें, पालीजें निर्धार ॥ परंपरायें ए व्रत सही, शिवमुखन दातार ॥ ७ ॥ कहे चक्रायुध कुण विनो, गंगदत्त गुणवंत ॥ पर्षद वारे श्रागलें, जांखे श्री नगवंत ॥ ७ ॥