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. श्री शांतिनायनो रास खंम उद्यो. ३५ . . . ॥ ढाल गणचालीशमी ॥
॥रहो. रहो रे यादव दो घडीयां ॥ ए देशी ॥ सुपो सुपो रे प्राणी शीखडीयां ॥१०॥ अक्ष्य निधि जिनधर्म ए पामी,काहेकुं मागत नीरखडियां ॥सु ॥ ॥ ए आंकणी ॥ शंखपुरें गंगदत्त व्यवहारी, वास वसे गुन चोघडीयां ॥सु ॥ २ ॥ जिनवर धर्म करे मन शुद्धे, जाणे ए चिं तामणि जडियां ॥ सु० ॥ ३ ॥ देशावकाशिक एक दिन घरनु, लीधुं न निसलं शेरडीयां ।। सु ॥४॥ साथ बदु आव्यो जाणीने, मित्र आवी कहे धारडियां ॥॥५॥ साथै चलो बहु लाज होवेगो,कहे गंगदत्त मुज प्रारखडियां ॥ सु० ॥ ६ ॥ मित्र कहे व्रत काले करेजो, लान बदु बाज
सांपडियां ॥ सु० ॥ ७ ॥ कहे गंगदत्त ए लाज न लेखे, व्रत नवि बोडं ___पा घडियां ॥ सु० ॥ ७ ॥ धन पुजल बदु बेर मिलेगो, धर्म करो दिन रातडियां ॥
सु धाज अ व्रत देशावकाशिक.मूको विकथा वातडियां ॥सु॥१०॥ मित्र लही तस निश्चय निज घर,आवे उत्साह विषु अडवडि यां ।। सु॥११॥ दु प्रजातें निश्चय पूरो,करि थावश्यक पडवडियां ॥ सुप ॥ १३ ॥ साथमें श्रावे वणिज करणकुं, करियाणां बहु ढग पड़ियां ।। सु ॥ १३ ॥ लिये लाखोके माल मुलावी, उनमें लान बहुत जडियां ॥ सु० ॥ १४ ॥ चिंते सवि ए धर्म महातम, दरिक्ष उडी जाये ज्यु चिडियां ॥ सु० ॥ १५ ॥ लानके धनसें चत्यनक्ति उर, साहामीवत्स लस जुडियां ।। सु० ॥ १६ ॥ बदु दिन श्रावक व्रत प्राराधी, चाखत थनुनव सेलडियां ॥ सु०॥ १७ ॥ अंतें घासण करि सुरलोकें, विलसे अप्सर गोरडियां ।। सु० ॥ १७ ॥ ॥ एक अवतार करी लहि केवल, च डशे शिवपुर पावड़ियां ॥सु॥रा दशमा व्रत उपर ए जिनवर,कह्यो संबंध रसवे डिलयां।सु॥२०॥ गएचालीशमी खं ढाल सिराडे ए चड़ियां धातु ॥२१॥ राम कहे व्रतपालक नरकुं, नवनिधि श्रावी रहे खडियां।।सु० || २२ ॥ इति दशम देशावकाशिकवते गंगदत्तकथानकम् ॥१०॥१५३॥
॥थकादश पोपवतसंबंधः ॥
॥दोहा॥ ॥ त्रीजं शिक्षवत हवे, कहे जिनत्रिवन नारा ॥ व्रतमाहे चम्यारमुं, पापचवत मन स्याण ॥ १ ॥ पुष्ट करे जे धर्मने, यादरिय तिथि पर्व ।।
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