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श्री शांतिनाथनो रास खंम हो.
॥दोहा॥ ॥ कनकवती चित्तमां वस्यो, श्री गुणधर्म कुमार ॥ रात दिवस तस रूपमां, मोही मोहविकार ॥ १ ॥ प्रेमसमो पावक नहिं, प्रेम समुं नहिं पाप ॥ प्रेम वडूं परवशपणुं, ए सम नहिं संताप ॥ २ ॥ प्रेम तणो “प्रे" तेश्ने, यमनो ले " मे "कार, “प्रेम” शब्द एम निपन्यो, जिणथी मुःख दातार ॥ ३ ॥ कनकवती मन समरतो, श्रीगुणधर्म कुमार ॥ निज उता रे आवीयो, पण जक नहिं लगार ॥ ४ ॥ रातें मूकी कुमरीयें, दासी तेह नी पास ॥ एक पाटी चित्रामनी, कर दीधी तस खास ॥५॥ कुमरें दीठी पट्टिका, तिहां कलहंसी रूप ॥ श्लोक एक तेहने तलें, वांचे कुमर स्वरूप ॥ ६ ॥ तद्यथा ॥ आदौ दृष्टप्रिया सानु, रागाऽसौ कलहंसिका ॥ पुनस्तद शेनं शीघ्र, वांवत्येव वराक्यहो ॥१॥ पूर्वदोहा । नावाशय लही तेहने, रीज्यो कुमर अपार ॥ रूप लखी कलहंसन,श्लोक लखे तेणि वार ॥७॥ तद्यथा॥ कलहंसोऽप्यसौ सुन्नु, दणं दृष्ट्वानुरागवान् ॥ पुनरेव प्रियां दृष्ट, महो वांडत्यनारतम् ॥ २ ॥ पूर्वदोदा ॥ कनकवती कुमरी वली, सरस सुगंधां फूल ॥ दासी साधे मोकले, विलेपन तांबूल ॥ ७॥ पुष्प लेइ शिर पर धयां, मुख चावे तांबूल ॥ अंगविलेपन चोपडद्यु, कुंवर गुणें अमूल्य ॥ए ॥ दान दिये संतोपर्नु, उज्ज्वल मोतीहार ॥ ते कहे सुग कन्या तणो, एक संदेशो सार ॥ १० ॥
॥ ढाल वारमी॥ ॥ कालानां गीतनी देशी ॥ कहे कर जोडी राजने ॥ वाहालेश्वर ॥ मुऊ स्वामिनी अरदास ॥ पियु तुम प्रेमपयोधिमां ॥ वा० ॥ मन नई सुविलास ॥ १ ॥ रात दिवस मुफ हृदयमां ।। वा० ॥ मोरने ज्यु जलधा र॥लागी मुफ तुज मोहनी ॥ वा०॥ न गमे हो अवर विचार ॥ ॥ में तुम कंवें स्थापवी । वा० ॥ परमातें वरमाल ॥ को दिन विपयने पडखवो ॥ वा ॥ थावु न अति उजमाल ॥ ३ ॥ कुमरें हो मानी वातडी ॥ वा० ॥ दासी थावी फरी गेह ॥ कनकवतीने मामीने ॥वा० ॥ वात कही ससनेह ॥ ४ ॥ हरिणादी हरखी हैये ॥ वा ॥ प्रगट दूर्ग पर नात ॥ स्वयंवर यावी रंगशुं ॥ वा ॥ वस्यो गुणधर्म सुजात ॥ ५ ॥ साजन जन सदु हर खियां ।। वा० ॥ हरख्यां हो माय ने तात ॥ सरखी
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