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३१७ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. . मती ए जोडली ॥ वा ॥ उलट यंग न मात ॥ ६ ॥ करे उत्सव विवा हना ॥ वा ॥ ईशानचंद नूपाल ॥ परणावी निजपुत्रिका ॥ वा ॥ वरती हो मंगलमाल ॥ ७ ॥ ससरे बहु धन धापीयुं ॥ वा ॥ मणिमय नूपण सार ॥ हय गय रथ दीधा घणा ॥ वा ॥ कहे सदु जय जयकार ॥ ॥ वोलावे निज कुंवरी ॥ वा ॥ शुजदिन जोइ विशेष ॥ शिखाम ण देई घणी ॥ वा ॥ मात पिता हित लेख ॥ ए ॥ नक्ति करेजो कंत नी ॥ वा ॥ धाण वहेजो अखम ॥ संगति मत करजो कदा ॥ वा ॥ जे होवे उर्जन संत ॥ १० ॥ सासु ससराजी तो ॥ वा ॥ विनय म चूकीश सार ॥ नोजन तुं करजे प॥ वा ॥ जमी रहे सवि परिवार ॥ ११ ॥ तुंकारो नवि दीजियें ॥ वाण ॥ कहिये न मर्म निटोल ॥ वैर वंधाये धाकरां ॥ वा० ॥ बोलतां कडवा रे वोल ॥ १२ ॥ सऊन ज ननी सेवना ॥ वा ॥ कीजें हो हप॑ रे धाय ॥ नीच निखर व्यसनी तणी ॥ वा ॥ उना न रहीये रे नाय ॥ १३ ॥ शील अखंमित पालजे ॥ वा० ॥ कुलवधू नाम धराय ॥ शोना सवल नपराजजे ॥ वा० ॥ वहे ली हो मलजे रे आय ॥ १४ ॥ सूजे पियु सूता पठी ॥ वा० ॥ ज़ागजे पहेली प्रजात ।। शोक्य सहूमांहे सही ॥ वा ॥ नाम धरावे सुजात ॥ १५ ॥ शुं तुमने कहीयें घj ॥ वा ॥ सहजगुणें तुं सुशील ॥ दान देवाने अवसरें ॥ वा ॥ वाम थाजे वखील ॥ १६ ॥ गुण सविधारे अंगमांगवाणाअवगुण अलगा निवार ॥ देव गुरुना विनयमां ॥वा०॥ खा मी न करशो लगार ॥ १७ ॥ नणंद जेनापीगुं नमी ॥ वा ॥ चालजे ए अम शीख ॥ विनय वडानो जालवे ॥ वा० ॥ कोनी मनांजीश जीव ॥ १७ ॥ शिख धरी शिर ऊपरें । वा० ॥ चाली हो कंतनी साथ ॥ सद्ध गुं जुहार करी चल्यां ॥ वा० ॥ दंपती दोय सनाथ ॥ १५ ॥ अनुक्रम श्राव्यां निजपुरें ॥ वा ॥ जामिनी ने जरतार ॥ नृप परिजन आनंदी था ।। वा० ॥ वाध्यो हो प्रेम अपार ॥ २० ॥ उतारी एक मंदिरें । वा० ॥ कनकवती नृपनंद ॥ प्रेमविलुछो हो प्राणीयो । वा० ।। महोटो ए मोहनो फंद ॥॥ मनमा बसी ते मानिनी ।। वा०॥ पण मुखधीन कहाय ।। एक दिन देखी कंतनें ॥ वा ॥ कामिनी उनी रे थाय ॥२॥ मांमधु प्रासन वेसवा ॥ बा ॥ कनी हो जोडी हाथ ।। चित्त चंचल