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श्री शांतिनायनो रास खंम पांचमो. ३ जे विषयमांराता,ते नर मूढ गमार रे ॥वि०॥२१॥ सर्वगाथा॥१॥२॥५॥
॥दोहा॥ ॥ कामिनी कहे तब कंतने,गुं लीधुंए काम ॥ ए नृप तुम के. थयो, मारणने सुपो स्वामि ॥ १ ॥ उगसाथें ठग थाश्य,धूतारे धूतार ॥ श्यो ख लने उपकार ए, सुगुणा कंत विचार ॥२॥ कहे वत्सराज खरुं कहो, पण की, अंगीकार ॥ मिथ्या में थाये नहि, श्यो हवे एह विचार ॥३॥ यतः ॥ जिद्वेकवसतामुने ॥ अन्यच्च ॥ वयणे नणियं खग्गं, कग्ग क केण संधियं वाणं ।। सुंदरि मुन काठ, मूत्रा ते वयण चुकश्या ॥१॥ अलसायं ते एवि स, जाणेण जे घरकरा समुल्लविया ॥ ते पत्रटंक किरि,य व नदु अन्नहा हुँति ॥ २॥ पूर्वदोहा ॥ ते माटें अंगीकघु, पा लेई में सार ॥ वचनचूक जीव्या तणो, स्वाद किस्यो संसार ॥ ४ ॥ कहे कामिनी आधार एम, चिरं जीवो महाराज ॥ एवं विराजो मालिये, उपकारी शिरताज ॥ ५ ॥
॥ ढाल तेत्रीशमी ॥ ॥ लांध्या तोडा तोड रे राज, लांघी नदी रे बनास ॥ ए देशी ॥ कहे कामिनी विद्याधरी राज, अलवेसर अम कंत ॥ सुख विलसो संसारनां राज, शी मनमां धरो चिंत ॥१॥ साहिवो रे महारो, उपगारी शिरताज ।। साहिबो रे महारो, गिरु गरीव निवाज ॥ साहिवो रे महारो, मोजी वडो महाराज ॥ साहिवा रे जोवो,धणरो तमासो धान ॥ ए बांकणी ॥ किंक ररूपं यदने राज, कहे तेडी एम वाणी ॥ कंतरूप धरी कारिमुं राज, जा नृपपासें सुजाण ॥ सा० ॥॥ जे कहे ते करजो तुम्हें राज, मत कहेजो नाकार ॥ साहिवरो पापी रहे राज, वरतवू तेम निर्धार ॥ सा ॥ ३ ॥ रूप धरी वत्सराजनुं राज, श्राव्यो नरपति पास ॥ दुक म करो थे राजवी राज, म्हाने सुगुण आवास ॥ सा० ॥ ४ ॥ जावो में महारी बती राज, यमने करि मनोहार ॥ मासमांहे शहां लावलो राज, कांश कहां वारं वार ।। सा० ॥ ५ ॥ लोक सहूको देखतां राज,अग्निमांहे प्रवेग ॥ कीधो सद्ध हा हा करे राज, धिक् धिक् राय श्रादेश सा॥६॥ गुणरचरों गाढो नयो राज, वत्स तरीसो कुमार ॥ नृप निंदय दुवो घणो राज, माखो ए निर्धार ॥ सा ॥ ७ ॥ इस बातें रुटुं नहिं राज, याव्यो