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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
हो रायनो अंत ॥ काम कियो चांमालनो हो राज, न करे इस्यो कोइ प्रांत ॥ सा० ॥ ७ ॥ शोच करे सद्को जना राज, नृप हर्षित दुउ ताम ॥ कहे मंत्रीने यापरो हो राज, चढियो सिराडे काम ॥ सा० ॥
|| प्राणो हवे ते सुंदरी राज, म करो विलंब लगार ॥ तव मंत्री कर, जोडीने राज, कहे नरपति अवधार ॥ सा० ॥ १० ॥ सकल प्रजा तुम उपरें राज, रागरहित ने स्वामि ॥ जो तेडावशो ए कामिनी राज, तो वि एसो काम ॥ सा० ॥ ११ ॥ संपद राग प्रजातणे राज, विण संपद श्यो राज ॥ राज विना रमणी किसी राज, सुण सुप गरिबनिवाज ॥ सा० ॥ १२ ॥ यतः ॥ विनयेन जवति गुणवान्, गुणवति लोकोऽनुरज्यते नित्य म् ॥ अनुरक्तस्य सहायाः, ससहायो युज्यते लक्ष्म्या ॥ ३ ॥ पूर्वढाल || ते माढें तुमने कहां राज, पडखो तुमें एक मास || प्रति उत्सुक दुवे दुते. राज, होवेजी काज विनाश ॥ सा० ॥ १३ ॥ यतः ॥ काज विचारी जे करे | मंत्री वाखो नृप रह्यो राज, मास लगें जेम तेम ॥ वोले मासे कामयी राज, अंध हुकम करे एम ॥ सा० ॥ १४ ॥ तेडी चार प्रधा नने राज, कम करे नृप जाम ॥ जाये जेवा नारीने राज, चतुर विचारी ताम ॥ सा० ॥ १५ ॥ यह मूकी पातलथी राज, पूरव जवनोजी बाप ॥ व्यंतरपति तेडावियो राज, ते पण प्राव्योजी याप ॥ सा० ॥ १६ ॥ तसारणें शोनावीने राज, हय वेसारीने हेज || मोकल्यो कंतने नृप कने, राज, व्यंतरपति शुं सतेज ॥ सा० ॥ १७ ॥ चटामांदे संचस्त्रो राज, लोक मल्यां लख कोडि || प्रहो पुयाइ एहनी राज, पूग्याजी वांबित कोड ॥ सा० ॥ १८ ॥ दरवारें नृप यागलें राज, कनोजी जोडी हाय || देखी विस्मय पामीयो राज, मन चिंते नूनाथ ॥ सा० ॥ १५ ॥ वीर एणें कीधुं वृथा राज, एक सुनापित सार || दिन रयणी यावे गले राज, नावे मुजे वीजी वार ॥ सा० ॥ २० ॥ यतः ॥ पुनर्दिवा पुनारात्रिः, पुनः सूर्यः पुनः शशी ॥ पुनः संजायते सर्व, न कोप्येति पुनर्मृतः ॥ ४ ॥ पूर्वढाल || पूढे नृप वत्सराजने राज, कुशली यमदेव || महिमा जेहनो घ्याकरो राज, करे वहु सुर जस सेव ॥ सा० ॥ २१ ॥ पूठ्युं मुऊने तुम सखाराज, केम बहु दिवसें प्राज || तुम स्वामी संचारीयो राज, मित्र डुं ते वत्सराज ॥ सा० ॥ २२ ॥ कयुं तव में सुण साहिबा राज, उत्स
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