________________
-
श्री शांतिनायनो रास खंम पहेलो. - श्य विहार ॥ वा ॥ १२ ॥ गुरु बाणा शिर पाघडी हो ॥धारी राखे सार ॥ वा॥ विषय न वांडे पाघडी हो ॥ ढुं तेहनी वलिहार ॥वा॥१३॥ जे संयम सुख पागले हो॥सुर सुख पण तिलमात वा॥ नर देव पण नित्य जेहनां हो ॥ चरण नमे परमात ॥ वा० ॥ १५ ॥ यमुक्तं ॥ तण संथार निविछो, मुणिवरो जग्ग राग गयमोहो ॥ जं पाव मुत्तिसुहं, कित्तो तय चक्कवट्टीवि ॥१॥ पूर्वढाल ॥ गुरु चरणाराधनथकी हो० ॥ सुरसुंदर कपिराज ॥ वा० ॥ सुगति लही सिक दशा हो ॥ जिहां सुख मोज समाज ॥ वा ॥ १५ ॥ हवे पाले निजराजने दो० ॥ मंगलकलश नरेश वाणा राज्ये वणिकने थापीयो हो० ॥ निसुएयु अपर पुरेश ॥व० ॥१६॥ दल ले ते थाविया हो० ॥ राज्य लेवाने काज ॥ वा० ॥ मंगल नृप चढती कला हो ॥ वश कीधां सदु राज ॥ वा ॥ १७ ॥ पुण्यदशा जस पाधरी हो ॥ मंगलमाला थाय वा पदपद पामे संपदा हो । मन धारे ते उपाय ॥ वा० ॥ १७ ॥ ढाल नणी ए ते रमी हो॥ पुण्यो दयनी वात ॥ वा॥ धन्य जेहनी धर्मे करी हो ॥ रंगाणी सवि धात वा० ॥ १५॥ सर्व गाथा ॥३ए ॥ गाथा तथा श्लोक ॥ ३३ ॥
॥दोहा॥ ॥ सुख जोगवतां अनुक्रमें, त्रैलोक्यसुंदरी साथ ॥ सुत जन्म्यो एक सुं दरु, उत्सव करे धरनाथ ॥१॥ यानंद धरी अंगज त', यशशेखर अनि धान । सऊन संतोपी घj, थापे ते राजान ॥ ॥ जिनमंमित प्रथिवी करी, खरची बदु धन कोडि ॥ नक्ति करे जिनवर तणी, प्रणमे वे कर जोडि ॥ ३ ॥ इव्यनक्ति विरचे नली, नावनक्ति अनिलाख ॥ वरसप्रत्ये साहम्मी निमित्त, खरचे धन के लाख ॥ ४ ॥ जिनगुरु जिनमत संघनी, नक्ति नेद ए चार ॥ आदरतां नज्ज्वल दुवे, समकितनो धाचार ॥ ५ ॥ समरथ सुत धागल थयो, राजधुरंधर धीर ॥ प्रजापाल पाले प्रजा, पर उ:ख कायर वीर ॥६॥ इण अवसर तिहां आविया, श्री जयसिंह मुनीश ॥ श्रवनीपति चंदन चल्यो, साथै सवल जगीश ॥ ७॥ गुरु वांदी निसुणे नृपति, देशन अमृतवाण ॥ कथा रसिक संवेगनी, निवेदनीव खाण ॥ ७ ॥ देशन धंतें पूठी, नृप पूरव अवदात ॥ गुरु ज्ञानी नांखे प्रगट, पुरव नवनी बात ॥ ५ ॥