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१३० जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. . वा ॥ १७ ॥ मान धरि करवाल ले कर, दोडियो आकाश ॥ श्रावतो । देखी चक्रसें हरि, बेदियुं शिर तास ॥ वा ॥१॥ दु जयजयकार गगर्ने, कुसुमको वरसात ॥ अनंतवीरय स्वामी तेरो, प्रबल पुण्य संघात ॥ वा॥ .. ॥२०॥ विजयधैं वासुदेवो, अपर ए बलदेव ॥ चिरं जीवो कोडि खेचरा, .. करण लागे सेव ॥ वा० ॥२१॥ जीत दुइ तब अनंतवीरय, उदय ए बल.. वान ॥ ढाल त्रेवीशमी त्रीजे खंमें, सुपो सुगुण निधान वा ॥२॥६६॥ .
॥दोहा॥ ॥ कनकसिरी मन चिंतवे, नागे मुज आचार ॥ बनी आवी तातथी, में कियो कुलसंहार ॥१॥ धिक् धिक माहापण माहरु, धिक् धिक् माहरु रूप ॥ जोतां मुज आगल इस्युं, कारिज थयुं विरूप ॥ २ ॥ कुल खंपण ढुं कुंवरी, कां अवतरी जगमाय ॥ जनक अने वली बंधुनो, कयो विना शण नाय ॥३॥ वे बांधव चाल्या तुरत, वेसी विमान मजार ॥ कनकसिरीकों साथ लर, बदु खेचर परिवार ॥ ४ ॥ निज नगरीनणी चालतां, विच कनकादि नदार ॥ याव्यो तब खेचर कहे, यहां के जैन विहार ॥५॥ चैत्य जुहारी जिन तणांवलतां दीनो साध ॥ कीर्तिधर नामें जलो, गुणमणि नखो अगाध ॥ ६ ॥ वरसी तपसी पामियो, उज्ज्वल केवल नाण ॥ दोय नरेश्वर पद नमी, करे मुनि तणां वखाण ॥ ७ ॥ धरा पीठ वेता विदु, कर जोडीने ताम ॥ नविक जीव प्रतिवोधवा, कहे मुनि देशन धाम ॥ ७ ॥
॥ढाल चोवीशमी॥ ॥ तुंगीया गिरि शिखर सोहे ॥ ए देशी ॥ कहे मुनिवर वात मीठी, सां जलो नवि वृंद रे ॥ पामियो ए उलह नरजव, करो धर्म अमंद रे ॥ का ॥ १ ॥ प्रथम चुल्लक अने पाशक, धान्य द्यूत विचार रे ॥ रयण सुमिण ते चक जाणो, कूर्म युग तिम धार रे ॥ कम् ॥ २ ॥ दशमे परमाणु वरखा पो, एह दश दृष्टांत रे ॥ जाणि उर्लन एह जुगतें, मनुज नवनी वात रे । ॥ क० ॥३॥ देश आरिज कुल अरोगी, नाव उलह सहाव रे ॥ लही योग ए वंध कारण, दूर ठम्य विनाव रे ॥ क० ॥ ४ ॥ मिथ्याल 'अविरति उष्ट योगा, तिम कपाय प्रमाद रे ॥ कह्या पंच ए वंध हेतु, तजो मन उन्माद रे ॥ क० ॥ ॥ कुगुरु कुदेव कुधर्म केरा, संगसें मिय्यात
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