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श्री शांतिनायनो रास खंमत्रीजो. शए
॥ ढाल त्रेवीशमी॥ ॥ कंदर्पना शर रे कांई करे, कटकें सुगुण राण सधीर ॥ ए देशी ॥ वालम देख रे कां चढयो कटकाइ, जनक राण सधीर । मारशे तोकुं थाइ अडियो, सवल मोकू पीर ॥ वालम ॥ १ ॥ चढयो दल चिढुं पासें हूंती, मेघ ज्युं गंजीर ॥ गाजे धन नीशान गाजे, तीर वरसत नीर ॥ वा० ॥ २ ॥ कुंत चमके थपी जवके, निसुण नएदल वीर ॥ मार्नु चपला चलत चिहुँ दिशि, थाइ पढुंचे वीर ॥ वा० ॥ ३ ॥ सुलट दूर उ मीय दृश्ने, हाको ज्युं हमीर ॥ देखी निजनट हटत पी, थाव्यो प्रति हरि पीर ॥ वा ॥ ४ ॥ रे रंक तुं कित जात लेकें, सुता रुचिर शरीर ॥ मारके चक चूर करसी, बडे एह अमीर ॥ वा० ॥ ५ ॥ ध्रुनंती तव देखे थर थर, कहे हरि सुण नारी ॥ सिंह अंके फिकर तनकी, कांड करत वि चार ॥ वा ॥ ६ ॥ दे धाश्वासन एणी परे, सेन्य सजीयुं जोर ॥ दोडी चिटुं दिशि वीर धाये, तब मच्यो रासोर वाणाजट मह तब उहली, दमितारि सेना साथ ॥ देखी निज बल मंद चिंते, शोचशुं हरि नाथ ॥ वा० ॥ ७ ॥ प्रगट हुए रत्न तताण, शंख धनु वनमाल ॥ गदा मणि उर वह देखत, दुए दोय उजमाल ॥ वा ! ए ! शंख लेइ करि पूरीयो तब, जोरसे नरसिंह ॥ सैन्य मूर्चित नई रिपुकी, आप फोज अवीह ॥ वा ॥ १० ॥ प्रतिहरि तब थाइ दूक्यो, बेर लेग विचार ॥ रथ चढी रणखेत दोडे, दोय बंधु तिवार ॥ बा० ॥ ११ ॥ नजरें नजरें मल्या दुशमन, चढयो क्रोध कराल | रंगे रणमेदान झटपट, लडे दोनं, व्याल ॥ वा ॥ १२ ॥ शस्त्रनी जलधार बरसे, रोपगुं दमितारि ॥ शस्त्र तो सब नये निःफल, खलें ज्युं उपकार ॥ वा० ॥ १३ ॥ शस्त्र तृटे फरिय पूजें, देखी प्रतिहार दीन ॥ चक्र समन्युं धाय वेलु, करें कदे सुण दीन ।। बाप ॥ १४ ॥ देइ तनुजा पा पर श्रव, का मरत थकाल ॥ मर दिखा बत सोहग्य, वडो तुं कंगाल । वा ॥ १५ ॥ कनकलिरि तर कंपनी युं, धरत मनमा खेद ॥ हा कंत्त प्राणाधार केरो, करेगी शिरवेद ॥ चार ॥ १६ ॥ म र मनमा कत बोले, देख तुं क्या होय ।। क बोटयुं तेणे हरिकर, प्राय पे सोय ॥ ना० ।। १3 ॥ कडे हरिदमितारि सुण तं, म मर जोगव्य राज ॥ कनालिरिक्तात उमली, गई कीनी बाज॥