________________
james An
१८४
जैनकथा रत्नकोष जाग आाठमो.
हो रायनो अंत ॥ काम कियो चांमालनो हो राज, न करे इस्यो को प्रांत ॥ सा० ॥ ८ ॥ शोच करे सहको जना राज, नृप हर्पित दु ताम ॥ कहे मंत्रीने यापरो हो राज, चढियो सिराडे काम ॥ सा० ॥ ए || प्राणो हवे ते सुंदरी राज, म करो विलंब लगार ॥ तव मंत्री कर जोडीने राज, कहे नरपति अवधार ॥ सा० ॥ १० ॥ सकल प्रजा तुम उपरें राज, रागरहित वे स्वामि ॥ जो तेडावशो ए कामिनी राज, तो वि
सशे काम ॥ सा० ॥ ११ ॥ संपद राग प्रजातणे राज, विण संपद श्यो. राज ॥ राज विना रमणी किसी राज, सुण सुरा गरिवनिवाज ॥ सा० ॥ १२ ॥ यतः ॥ विनयेन जवति गुणवान्, गुणवति लोकोऽनुरज्यते नित्य म् ॥ अनुरक्तस्य सहायाः, ससहायो युज्यते लक्ष्म्या | ३ || पूर्वदाल ॥ ते माटें तुमने कहां राज, पडखो तुमें एक मास ॥ अति उत्सुक दुवे दुते, राज, होवेजी काज विनाश ॥ सा० ॥ १३ ॥ यतः ॥ काज विचारी जे करे | मंत्री वायो नृप रह्यो राज, मास लगें जेम तेम ॥ वोले मासे कामथी राज, अंध हुकम करे एम ॥ सा० ॥ १४ ॥ तेडी चार प्रधा नने राज, हुकम करे नृप जाम ॥ जाये लेवा नारीने राज, चतुर विचारी ताम ॥ सा० ॥ १५ ॥ यह मूकी पातलयी राज, पूरव जवनोजी वाप ॥ व्यंतरपति तेडावियो राज, ते पण याव्योजी आप ॥ सा० ॥ १६ ॥ तारणें शोजावीने राज, हय वेसारीने हेज || मोकल्यो कंतने नृप कनेराज, व्यंतरपति शुं सतेज ॥ सा० ॥ १७ ॥ चटामांहे संचखो राज, लोक मल्यां लख कोडि || अहो पुण्याई एहनी राज, पूग्याजी वांवित कोड ॥ सा० ॥ १८ ॥ दरवारें नृप यागलें राज, कनोजी जोडी हाथ || देखी विस्मय पामीयो राज, मन चिंते नूनाथ ॥ सा० ॥ १९ ॥ वीर एणें कीधुं वृथा राज, एक सुनापित सार || दिन रयणी यावे गळे राज, नावे मु बीजी वार ॥ सा० ॥ २० ॥ यतः ॥ पुनर्दिवा पुनारात्रिः, पुनः सूर्यः पुनः शशी ॥ पुनः संजायते सर्व, न कोप्येति पुनर्मृतः ॥ ४ ॥ पूर्वढाल || पूठे नृप वत्सराजने राज, वे कुशली यमदेव || महिमा जेहनो याकरो राज, करे वहु सुर जस सेव ॥ सा० ॥ २१ ॥ पूठ्युं मुने तुम सखा राज, केम बहु दिवसें श्राज || तुज स्वामी संचारीयो राज, मित्र ढुं ते वत्सराज ॥ सा० ॥ २२ ॥ कयुं तव में सुप साहिबा राज, उत्स