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श्री शांतिनाथनो रास खंम हो. ३१ ताणियो । जी० ॥ ३० ॥ जीरे मार पड्यो तस जोर, मुखहूंती सुर एम कहे ॥ जी० ॥ जीरे का दीधो उपदेश, लीनथकी जीव व लहे ॥ जी० ॥ ३१ ॥ जीरे चरण नमीने तेह, निज अपराध खमावतो ॥जी॥ जीरे टलवलतो ते देखी, सुरें मूक्यो तेने जीवतो ॥ जी० ॥ ३२ ॥ जीरे समृदिदत्त मनमांहे, चिंते में मातुं कयुं ॥ जी० ॥ जीरे अनर्थदंम एके क, कीधाथी बदु :ख वयुं ॥ जी० ॥ ३३ ॥ जीरे मन आव्यो वैराग्य, नावें तेणें संयम ग्रह्यो ॥जी॥ जीरे पाले निरतिचार, सुर वैमानिक सुख लघु ॥ जी ॥३॥ जीरे पामी नर अवतार, समृदिदत्त संयम ग्रही। जी० ॥ जीरे धागामिक नव सार, शिवलीला लहेशे सही ॥ जी० ॥ ३५ ।। जीरे शांतिप्रचुयें ए वात, यष्ठम व्रत उपर कही ॥ नी० ॥ जीरे व्रतपालण उनमाल, नवियण तुम्हें थाजो वही ॥ जी ॥३६ ॥ जीरे बरे खमें एह, दास कही साडत्रीशमी ॥जी॥ जीरे रामप्रनुनी वाणी, नवियण मन साकरसमी ॥जी॥३७॥ इत्यष्टमानर्थदंमविरमणवतोपरिसर विदत्तकथानकम् ॥॥ इति त्रीणि गुणवतकथानकानि ॥सण॥१५॥६ए।
॥अथ नवम सामायिकव्रत संबंधः ॥
॥दोहा॥ ॥ हवे शिक्षाबत जिन कहे,चन संख्यायें सार । सामायिक व्रत प्रथम तिहां, कहे प्रनु जगदाधार ॥ १ ॥ साम अने सम तिम वली, सम्यग एक विचार ॥ सामायिक एक अर्थ ए, नारख्यो सूत्र मकार ॥ २ ॥ नाम स्थापना इव्यथी, नाव निदेपा चार ॥ प्रनुनी नांखे तेहनो, अर्थ अनोपम सार ॥३॥ यतः॥ मदुरपरिणाम सामं,समं तुला सम्म खीर खंग जुई। दोरे दारस्सतिग,धम्मे धाई तु दबंमि ॥ १॥ यावमा परारक मकरणं राग दोत मावे ॥ नागाइतिगं तसाइ, पोसणं जावसामाई ॥ २ ॥ पूर्वदोहा ॥ मन बच काया योगनो, इष्टप्रयोग निवार ॥ अनव स्थान चोथो वली,स्मृतिविहीन तेम धार ॥४॥ अतिचार पंच एहना,तेम बली दोष वनीश ॥ सामाविकमा टालिये,तो लहिये सयल जगीश ॥ ५ ॥
॥ ढाल धाडत्रीशमी ।। ॥ सामायिक छात्रिशदोपस्वरूपं कथ्यते ॥ चोपाई। यात रोश्तणो परि हार,यतिथि सीम संयमाचार ॥ यायो समतानो परिणाम, सामायिक