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३ए जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. १३ ॥ जीरे जोर कल्यं नृप लोक, निधन पमाड्यो चोरने ॥जी॥ जीरे चोरें मरतां तेह, माखो शेव किशोरने ॥जी० ॥ १४ ॥ जीरे खा , ग्रही प्रजात, नेट कयुं जय रायने ॥जी॥ जीरे समृद्धिदत्तने कोध, नांखे नृप वोलाइने ॥जी॥१५॥ जीरे केम कीधो ते अन्याय, खड्ग एह ताहारु : सही ॥ जी० ॥ जीरे वात कही समजाय, पण नृप कहे मेनुं नहिं ॥जी० ॥ १६ ॥ जीरे रायें दमयो तास, केम प्रमाद तें यादस्यो । । जी० ॥ जीरे निर्धन कर घर वार, मूक्यो ते शोके नखो ॥ जी० ॥ १७ ॥ जीरे एक दिन तेण अयाण, विष वेचातुं कोश्ने ॥जी॥ जीरे.. दीधुं धनने लोन, नृपवैरीने जोक्ने ॥ जी० ॥ १७ ॥ जीरे ले तेणें चंमाल, सरवरमां विप घातियुं ॥ जी० ॥ जीरे ते पीधे के लोक, पुरमा हे मृत्यु पामियुं ॥ जी० ॥ १ए ॥ जीरे नृप जाणी ते वात, जल पीधे बदु नर मूत्रा॥जी॥जीरे रायें कढावी शुद्धि, कहो एकुण कारण दुयां ॥जी॥॥ जीरे कोकथी सही वात, विषप्रयोगनी मांदिली ॥जी॥ जीरे रायें तेड्यो तेह, तुरत न कीधी काहेली ॥जी॥१॥ जीरे पूडे नर तेडावि,को पासें तें विष लियु ॥जी॥ जीरे [ हवे जूते याय,समृदिदा मु. ऊने दियुं ॥जी॥ २२ ॥ जीरे राये जाणी अनीति, समृद्धिदत्तने दमियो ॥जी॥ जीरे पुरमा तस अप्रीति, सदुको जाणे लंगियो ॥जी॥३॥ जीरे वती एक दिनने योग, कौटुंबिक कोइ आवियो ॥जी॥ जीरे नूतन वत्स युग एक,ते संघातें जावीयो । जी॥२४॥ जीरे समृधिदत्त तेणि वार,पूने तेहने प्रेमj ॥जी॥ जीरे ए वत्स दमवा योग्य, दमता नथी कारण कि - इयुं ॥ जी० ॥ २५ ॥ जीरे आर कशा ने घात, निर्दयपरिणामें करी ॥ जी० ॥ जीरे वत्स दमो सुविशेप, लघुवयमां कलट धरी ॥जी० ॥ २६ ॥ जीरे वात सुपी रूप दोय,नी उपर कोप्या घj ॥ जी० ॥ जीरे नाम थकी पण एह, प्राणीने दुःख अलखामणुं ॥ जी० ॥ २७ ॥ जीरे ते 0 नइते वत्स दोय, दमवा मांमधा निर्दयी ॥जी॥ जीरे ते सुकुमार शरीर, वेदन सहे वापी नहिं ॥ जी ॥ २७ ॥ जीरे तनु ल य तेह, एक दिन काल कस्यो वने ॥ जी० ॥ जीरे अकामनिर्जरायोग, थया व्यंतर सुर एक मनें ॥ जी० ॥ २५ ॥ जीरे झान तणे उपयोग, अहित कारक तस जाणीयो । जी जीरे धावी तिहां सुर दोय, सबलो तेने