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श्री शांतिनायनो रास खंम को. ३५७ रता होय पहेलो, नांखे बिनुवनलाण नीम ॥ ३ ॥ इत्खर जाटी दे वदा कीधी, किणहिक गणिका नारी जी ॥ स्वल्पकाल साधारण वुझे,गमने वीजो अतिचार जी ॥ म ॥ ४ ॥ अनंग तपी क्रीडा नवि करवी, पर नारी संघात जी ॥ अधरदशन कुचमर्दन चुंबन, तजी आलिंगन वात जी ॥ म० ॥ ५ ॥ परनारीनां थंग मनोहर, नवि निरखे सविकार जी। शीलवंत श्रावकने नांरव्यु, एम कहे जगदाधार जी । म०॥ ६ ॥ यतः ।। पर उन्नंग दंसणेश, गोमुत्त ग्गहण कुसुमिणे चेव ॥ जयाणा सबब करे, इंदिश अवलोयणे अतहा ॥१॥ पूर्वढाल ॥ ढांक्यां अंग नारीनां जोतां, उलटे राग अताग जी ॥ फरसे तेम वली वाधे बमणो, वरजे तेह महा जाग जी ॥म० ॥ ७ ॥ नजरें श्रावे रूप कदाचित्, न धरे राग ने क्षेप जी ॥ गोमूत्रादिक ग्रहतां न करे, मर्दन योनिविशेष जी ॥ म ॥७॥ शयन करतां पहेलु चिंते, शल्य विपोपम काम जी ॥ खिणमित्त सुख बद्ध काल लगें उख, मन चिंतवीय धाम जी ॥ म ॥ ॥ ॥ एम जावन वै गग्य सूतां, कुसुमिण नावे रात जी ॥ मोह उदयथी कदाचित् श्रावे, तो निसुगो तस बात जी ॥ म ॥ १० ॥ ऊठी इरियावही पडिकमीय, निंद तजी ततकाल जी ॥ काउस्लग्ग कीजें चर लोगस्सनो, नावें या उनमा स जी॥ म॥११॥ इश्यि अवलोकननी जपणा, दृष्टिनिवर्तन रुप जी ॥ यः ॥ गुयोरुवयकरको रु यंतरे तह यणंतरे दिई ।ता हरत दिति, नय बंध दिहिए दिहि ॥ २॥ पूर्वढाल ॥ अनंगकीड वपर ए वि तर, नांखे श्रीजिननप जी ॥ म० ॥ १२ ॥ श्रथना निजनारी थातुर, नावविषय थलमान जी । चोगशी थासन यामवन, न करे अक्षावान जी।। म ॥ १३ ॥ पुरुष नपुंसक मेवन तिम वली, दलकर्म परिहार
जी ॥ काट चर्म फल माटी घटित जे, कामोपगरण धार जी ॥म०॥ - ॥ १ ॥ एलयकी जे कीडा करवी,ते पण त्रीजो जाण जी ॥ दवे विवा सनगो कई चोथो, ने निणो गुणरवाण जी म ॥ १५॥ कन्या पल शिष्मायें परना, बालस्नो विवाद जी । निजदाग संतोपरी न करे, गुणी तस मम उत्ताद जी ॥ 2 ॥ १८ ॥ निज दारा संतांनी निन Fam, नपरे पर विचार जी ॥ परवाग पनी निज वेश्या, निणु नहीं विषयविकार जी॥ म १२ ॥ अचरथी मनचकायें न न न क