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श्री शातिनाथनो रास खंम चोथो. १४७ नावि सुणो नव जिन शांतिनो जी ॥ ए आंकणी ॥ जिम दुवे लीलविलास ॥ दुरित दूरे टले जवतणां जी, संपजे वांवित आश ॥ ॥ २ ॥ तीर्थ कर आदि नर रयणनो जी, जिहांकणे संचय सार ॥ सूत्र विख्यात नयरी कही जी, रयणसंचय गुणधार ।। न० ॥ ३ ॥ चोरनुं जोर तिल जर नहीं' जी, वलि नहिं विटतणो वास ॥ नयरी न्याय वरते घणो जी, धन कण शदि निवास ॥ ज० ॥ ४ ॥ वारे पुर्नीतिने जे सदा जी, सकल . प्रजा करे देम ॥ नूप देमंकर जिनतणी जी, घाण माने सगु प्रेम ।। न० ॥ ५ ॥ म सुई उही त्रए ज्ञानना ज़ी, धारक त्रिद्वं जगमित्त ॥ पण निजकर्मने काढवा जी, रहे गृहवास गुनंचित्त ॥ ज० ॥ ६ ॥ तास घरे शीतगुण शोनती जी, उपती पुण्यनी राशि ॥ रत्नमाला रलियामणी जी, कामिनी गुण आवास ॥ ७॥ जीव अपराजितनो चवी जी, उपन्यो ते हनी कूरख ॥ सुपन तेणे चौद दीनां जलांजी, तेहिज रातें गतःख । न ॥ ७ ॥ प्रहसमे पियुकने प्रावीने जी, नांखियु सयल विरतंत ॥ पुत्र होशे सही ताहरे जी, दीपतो बदु गुणवंत ॥जाए। कंत देमंकर मुखथकी जी, सांजली यई सुप्रसन्न ॥ सकल होजो पियु तुम कह्यु जी, विकसीयां नयरा तन मन्न । न ॥ १० ॥ गर्न वाधे हवे अनुक्रमें जी, पूरण मासे सुत सार ।। जन्मीयो दीधी वधामणी जी, दासी हर्प अपार ॥ ज० ॥ ११ ॥ आपीयुं धन बहु तेहने जी, सात पेढी लगे जेह ॥ खरचंता के मे चूटे नहिं जी, राखियो अविड नेह ॥ ज० ॥ १२ ॥ जन्म उत्सव करे अति नलो जी, पन्नरमुं वजयायुध ॥ स्वप्न दी मायें तेणें धन्युं जी, नाम “बज्वायुध" गुड़ ॥ न० ॥ १३ ॥ गुक्त पद वीजनो चश्मा जी. दिनप्रत्ये जेम वावंत ॥ सकल जनना मन मोहतो जी, अभिनव मान, रतिकंत ॥ ॥ १३ ॥ रंगें रमाडे उत्संगमां जी, मायने मन घणी न्याश ॥ सुतमुख देखी मन हरखती जी, बोलती एणि परें नास ।। न० ॥ १५ ॥ सुत चिरंजीव रहो माहरा जी, ताहरा शमन दूर ॥ दिन दिन कल्पतरू परें फलो जी, श्रम मनोवांनित पूर ॥ न ॥ १६॥ अनु पम अंगें सदए धरे जी, अडदिय सहम उदार ॥ वय थयो वरल ए याउनो जी. शीखीयो शास्त्र विचार || न० ॥ १ ॥ जाए बढोनर कला नो गयो जी, सवि सहे जीवना जेद ॥ शुभ नवरी ते व्यवहारनी जी,