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श्री शांतिनायनो रास खंम छो. ३४१ वन तात ॥ शां॥ २ ॥ प्राणीवध वदु नेद , दोयशे ताल ॥ नव त्रि कछु गुणतां थकां, सत्त्यावीशज नाल ।। शां॥ ३ ॥ करण करावण धनु मतें, एक्याशी विचार॥लेखवतां त्रिदुकालथी, संख्या अवधार ॥शां॥४॥ यतः ॥ नू जल जलणानिल वण, विति चन पंचिंदिएहिं नव जीवा ॥ मण वय काय गुणिया,हवंति ते सत्तवीसत्ति॥३॥श्कासी इसा करण,कारणा पुमइ ताडिया हो ॥ सच्चिय तिकाल गुणिया, उन्निसया हुँति तेयाला ॥४॥ पूर्वढाल ॥ ए सवि हिंसानेदथी, विरम्या थपगार ॥ वीश वसा तेजने कही, दया संयम सार ॥ शां० ॥ ५ ॥ यूल नगारे दश रह्या, था रंने हो पंच ॥ सापराध सापेक्षथी, अई थईनो संच ॥ शां० ॥ ६ ॥ यतः ॥ थूल सुदुमा जीवा, संकप्पारंज थ ते ऽविहा ॥ सावराह निर वराहा, सावरका चेव निरवरका ॥५॥ पूर्वढाल ॥ एम सागारी सवा वसो, फरुणा पालंत ॥ अच्युत सुर लगि घायुखं, वांधे गुणवंत ॥ शां० ॥ ७॥ पंच अतिचार एहना, वह बंधना विवेद ॥ अतिनारारोपण वली, नात पाणी विछेद ॥ शां० ॥ ॥ ए मुख्य व्रतने पालवा, वीजा वाड समान ।। जीवदया व्रत मूलगु,नांखे जगवान ।। शां०॥ ए॥ यउक्तं ॥ देवपूजागुरू
पास्ति, दीनमध्ययनं तपः ॥ सर्वमप्येतदऽफलं, हिंसा चेन्न परित्यजेत् ।। । ॥ ६ ॥ जं धारुग्ग० ॥ योदयात् ॥ निरतिचार ए पालतां, लहे लील विलास ॥ श्ह नव परनव सुख घणां, जेम ते यमपाश ॥ शां० ॥ ॥ १८ ॥ चक्रायुध पूरे जिन कहे, वरते सुखवास ॥ नयरी वाणारसीथ तिनली, नहिं दरि निवास ॥ शां० ॥ ११ ॥ उर्मर्पण राजा तिहां, न्या ची गुणवंत ॥राणी कमतश्री नली, शीलें शोनंत ॥ शां० ॥ १२॥ नामें सुमंजरी धाकरो, तिण नयरी तलार ॥ यमपाश जाति चांमाल, नहिं कम लगार ।। शां० ॥ १३ ॥ एक नलदामा वाणीयो,निवसे तिहां संत॥ नाम सुमित्रा रोहिनी, दंपती एक चिन ॥ शां० ॥ १४ ॥ तस घर मम्म - लुत ठे, सह्यो योवनपूर ॥ सुख बिलले संसारनां, चढतुं जस नूर ॥ शां० ॥ १५ ॥ एक दिन एक हय ऊपरें, थयो नृप असवार ॥ चरी मुरे ते याश्रयो, हयने तेणी वार ॥ शां० ॥ १६ ॥ उत्पतियो बेगें तदा गगने हय तेह ॥ दृरे ना ज़मि पडयो, नृप कोइ बननेह ।। मां०॥ १॥ हर पदोती परलोकमां, नृप श्रायुने योग । चंच्यो ते वनमा जमे, नानी