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- श्री शांतिनायनो रास खंम बीजो. ५३ १॥ न कहुं धातमकाल, गुए गलिया सवे ॥ वलीया पण मुजमां किस्यु .' ए॥ १३ ॥ गुस्साखें अपराध, रे खामे तेहने ॥ रोप रखे मन राखता ए .|| १४ ॥ केवललोकालोक, नासक प्रजु कह्यो ॥ राग केम ए ऊपरें ए
॥ १५॥ नहिं मुफ पापनी बुद्धि रे, महेलीमायिकने ॥ एहनें में ग्रहियाणीने ए॥१६॥ कहेशे नाणी वात रे, ढाल अग्यारमी ॥ बीजे खमें ए दुई ए ॥१७॥ .
॥दोहा॥ ॥ रत्नपुरें पूरव नवें, गुरु कहे ए श्रीपेण ॥ अमिततेज नृपति हतो, वलियो नाग्यवशेण ॥ १ ॥ कपिल नाम हिज तुं दुन, सत्यनामा तुज नारि ॥ नवनोगें इहां अवतरी, सती सुतारा सार ॥ २ ॥ कपिल जीव बदु नव नमी, कोइक नव थझान ॥ तप करिने शहां अवतखो,
अशनिघोप राजान ॥३॥ पूरव जव संबंधथी, राग विना हरि एह ॥ . गतरागी पूरव नवें, तेणें तुं मंदसनेह ॥ ४ ॥ अमिततेल निज जव चरित, निसुगी कहे मन कोड ।। धन्य ज्ञानी तुम झाननें, प्रपमुंबे कर जोडि ॥ ५॥ के हुँ जव्य धनव्य हुं, नांखो मुज मुनिराज ।। जवसायरमा तुं मल्यो, तारण तरण जहाज ॥ ६ ॥
॥ ढाल वारमी॥ ॥ ताहारो शहेर नलो योधाणो॥ राजा जी ए देशी नाखे धवल मु नीश्वर वाण ॥ राजा जी जाग्य महोटानोतुं धणी जी॥हांधी नव नवमे गुपपरवाणि ॥ रा० ॥ होशो जिनेश्वर बहुगुणी जी ॥ १ ॥ नव एके पं चम चकी ॥ राम् ॥ पोडशमो जिनवर बली जी ॥ तिहां श्री विजया निध नृप ॥रा ॥ पहेलो सुत मन रली जी ॥ २ ॥ करी घाती कर्मनी
अंत ॥रा ॥ थाशो तुमें तिहां केवली जी ॥ गुण गाशे तुज धरी रंग - ॥रा ॥ समवसरण सुर नर मनी जी ॥३॥ एम निसुणी झानीनी
पास ग ॥ दिल उनम् क्लट घणे जी ।। यदि पावरु त मन शुभ ...॥ नालीजी ॥ जयें तुमारे जामणे जी॥ ४ ॥ कहे यशनियोष मुनिराज
नाए ॥ तारो दो मुज करुणा करी जी ।। हूं तो यास्यों जया जोर
ना ॥ चरगतिमा फेरा फरी जी ॥ ५ ॥ तुमो जायो सपती बात ॥ ना० ॥ जे नुम यागत दाग्यवं जी ॥ तेनो मातनी धागल श्रादि । ना जेम मोशान नाखो जी॥ ८॥ हवे याव्यो तुमारी पाम ॥